श्रमण भगवान महावीर | Shraman Bhagawan Mahaveer

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Shraman Bhagawan Mahaveer by प० कल्याणविजयजी गणी - Pt. Kalyanvijayeeji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अजय बपे तक निञ्ञ धर्म का आरावन करके अनशन किया था जौर अन शन के समय भगवान्‌ याणिज्यप्राम के दूतिपलास चैत्य में पधारे थे, ऐसा उपासकदशांग में छिसा है, अत तेईमवें वर्ष भगवान्‌ वाणिउ्प- गाँव में थे, यह निश्चित है। इसलिए उस वर्ष का वर्षोवास भो पदों अथवा बैशाली में किया हो तो इसमें कोई शक नहीं । (२४ ) यह भी सभव है फि विदेह भे आने के घाद भगवान ने एक घार सध्यप्रदेश मे भी विहार किया होगा। वेशाली-बाणिब्यगॉय में चर्षावास पर्याप्त दो चुके थे, अत अगला वपोवास भगवान्‌ ने मिथिला में ही किया होगा । (२५ ) मिथिला का वर्षावास्र व्यतीत करके भगवान्‌ राजगृह गये हंगे, क्योंकि गणघर प्रभास इसी वर्ष राजगृद्द के गुणशीर चेत्य में अनशनपूर्वक निवाण को प्राप्त हुए थे और भगवान्‌ उनऊे पास थे। इस दशा में उप्त वर्ष का वर्षावास भी बद्दों किया दोगा, यदद भी निश्चित है! (२६ ) अचछश्नाता और भेताये, इन दो गणधरों का छ्पीस वर्ष के पयौय में गुणशोल चेत्य मे निवीण हुआ था, भत इस साठ भी भगवान्‌ इसी प्रदेश मे विचरे थे और वबषोवास भी मंगघ के केन्द्र मे ही किया द्वोगा ! ( २७-२८ ) वैशाली बाणिज्यगोंव में वर्षोवास पर्याप्त हो चुके भे और उन्तीसवें तथा तीसवें वर्ष उत्तकी स्थिरता राजगृह में हुईं थी, यह भी निश्चित है, क्‍योंकि इन्हीं दो वर्षों मे भगवान्‌ फे छ गणधर राजगह के गुणशील वन में मोक्ष को प्राप्त हुए थे और उस समय भगवाव्‌ का चह्ाँ होना अवश्यभावी है। अत सत्ताईसवाँ तथा अट्ठाईसवा, ये दो वर्षावास भगवान्‌ ने मिथिला मे ही किये होंगे, यह स्वत सिद्ध दे । (२९ ) यद्द वर्षावास राजगृह में हुआ था, यद्द ऊपर के विवेचन मे कहा जा चुका है। (३० ) इस वर्ष से भगवान्‌ मगध में ही विचरे और वर्षावास पावामध्यमा, से किया, ऐसा कल्पसूत् से सिद्ध दे । हे डे




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