जैन भजन संग्रह | Shari Jain Bhajan Sangrah
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.23 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दाखि अनन्त चली जगनायक्ष, चारों घातक रे टरे 1!
चार अधघातक दाल्ति बिना चिल, मारे आापदो मरे मरे
निज अ्जुभूति परी पर दाथन, ताकारल -ि सरें थरे |
लय आइ अपर च्रमें तब, सकल मचारथ खरे खरे 1 ६ ॥!
जे जे कार सचो चिसुचन में, इन्द्रादिक एग परे परे ॥
नैनानन्द मच चल कायसूं , दिंत कर वन्दन करे करे ॥ ४ ॥
राग जन्नला-टुपरी श्री दासुपज्य]
पूजत क्या नहिरि मतिंमंद, दासपूज्य जशिनपद अरविंद ॥ टेक 1।
चाल ब्रह्मचाय संवतारो, परम दिरस्वर सुद्रा धारी ।
दुचिधि परित्नद्द संगतजाजिन, गुण अनन्त खुख संपतसिषु ॥३॥
ध्याता ध्ययं ध्यान विभाशी, छाता ज्ञेयं ज्ञान प्रकादी 1
पापातिक्ष विमुक्तमछीघं, तारण तरण सद्दज चिरद्धन्द ॥ २ ॥
मदोमा वणत गणपधघर हारे. चलन अगाचर हू युणसारे ।
परसलत सात जलतम लसदरखस, सामंडल अतिदाय अचलंत ॥ ३ ॥
प्रातिद्दायं चचुमज्लुछ दूर्व , सेचत खुर चर मु गण सचं ।
पांचवार ज्ञाह्दि पुजद आये, चं पापुर सुर इन्द्र फलद्र ॥ ४ ॥
चासदघ कुछ चंद्र उजागर, जया जयावात सुत खुण चागर ।
दगसुख वीतराग लि तुमझू , आय दारण काट भवफंद पा
३७०-रागनी घनाश्री ( विमलनाथ )
अजब मोहिं विमछू करो, हें चिप जिस अवमोहि दिमखूकों ! टेक
घर्में. सुधारल प्यास लगत गुरु, घिपय कलंक दरों |
दीतरामता साव प्रकाद, दिव मग साहि घरये ॥ ६ ॥
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