श्री जैन स्वाध्यायमाला | Shri Jain Swadhyay Mala

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Shri Jain Swadhyay Mala by रतनलाल डोशी - Ratanlal Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शीय थे पा! बंदिस्जा, धीय दागरा थे #हलि ५ 1 जय का, वहा दे पद्चिमागयि । खगेष अयथराई भें, घद्ण्ण शा प्रणोनि थे 18 ८। परगली था प्ओएएं, चोदइजों बहई हां 1 एप इवद्िमिह्याणं, दस बसों पदाइवर् 1871 गलवने लगते था, ण प्रिसिज्जादइ परिस्यिणे । मगर क्रासणं धीरों, सरतसार परदिस्युणे 1२७। माल उंदोदयारं छ, परदिशेतिगाण हि८ाति । पैण सेण उबाएण॑, से से संयेश्यायए 1२५। विवसी अधिणियरस, संपर्ती खिणियस्स थे | जस्मेय॑ झातो णाये, सिमखं से सिगल्‍ूठश २२।॥ दे यावि घंटे मण्इठ्षिगारने, पिसुणे णरे माहसद्वीणपेसण ! अदिदुधम्मे चिणए अकोबिए, असंयिनभागी ण है तस्स मवयो 1२३॥ णिह्दुंसवित्ती पृण जे गृरूणं, सुयत्थधम्मा ग्रिणमग्मि सोनिया । तरितु ते ओघमिणं दुसततरं खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया (२४८। ॥ इति बिणयसमाहिणामज्ञ्यणे बीओ उद्देसो समतो ॥ तइओ उद्देसो भायरियं अग्गिमिवाहियग्गी, सुस्सूसमाणों पडिजागरिज्जा । बालोइयं इंगियमेव णच्चा, जो छंदमाराहयई .स पुज्जो 1१॥ आायारमट्टा विणयं परंजे, सुस्सूसमाणों परिगिज्ञ ववयां । जहोबइट्ठ अभिकंखमाणो, गुरु तु णासाययई स पुज्जो 1३




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