श्री जैन स्वाध्यायमाला | Shri Jain Swadhyay Mala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शीय थे पा! बंदिस्जा, धीय दागरा थे #हलि ५
1 जय का, वहा दे पद्चिमागयि ।
खगेष अयथराई भें, घद्ण्ण शा प्रणोनि थे 18 ८।
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गलवने लगते था, ण प्रिसिज्जादइ परिस्यिणे ।
मगर क्रासणं धीरों, सरतसार परदिस्युणे 1२७।
माल उंदोदयारं छ, परदिशेतिगाण हि८ाति ।
पैण सेण उबाएण॑, से से संयेश्यायए 1२५।
विवसी अधिणियरस, संपर्ती खिणियस्स थे |
जस्मेय॑ झातो णाये, सिमखं से सिगल्ूठश २२।॥
दे यावि घंटे मण्इठ्षिगारने, पिसुणे णरे माहसद्वीणपेसण !
अदिदुधम्मे चिणए अकोबिए, असंयिनभागी ण है तस्स मवयो 1२३॥
णिह्दुंसवित्ती पृण जे गृरूणं, सुयत्थधम्मा ग्रिणमग्मि सोनिया ।
तरितु ते ओघमिणं दुसततरं खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया (२४८।
॥ इति बिणयसमाहिणामज्ञ्यणे बीओ उद्देसो समतो ॥
तइओ उद्देसो
भायरियं अग्गिमिवाहियग्गी, सुस्सूसमाणों पडिजागरिज्जा ।
बालोइयं इंगियमेव णच्चा, जो छंदमाराहयई .स पुज्जो 1१॥
आायारमट्टा विणयं परंजे, सुस्सूसमाणों परिगिज्ञ ववयां ।
जहोबइट्ठ अभिकंखमाणो, गुरु तु णासाययई स पुज्जो 1३
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