श्रीमद वाल्मीकि रामायण युद्धकांड | Shrimadvalmiki Ramayan Yuddhakand (purvardha - Vii)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
740
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २ 9)
बढ़ाने के लिए यह भी कहना कि अद्जदादि बानर लड्ढा
को तहस-तहस कर डालेंगे। अतः सेना को युद्धयात्रा
के लिए शीघ्र आज्ञा दी ज्ञाय |
चौंथा सर २०--४७
सुओऔव के प्रति श्रीरामचन्द्र जी का यह कथन कि,
युद्धयात्रा के लिए अभी मुहूत शुभ है । श्रीराम चन्द्र
जी का सैन्य लड्ढा की.ओर प्रस्थान | शुप शक्रुनों का
देख पड़ना । समुद्रतट ;पर पहुँचना, वहाँ सैन्यशिब्रिर
की खापना । समुद्र को देख हरियूथपों का विस्मित
होना । ५
पाँचवाँ संग ४७--४२
सागर के उत्तर तट पर सेना का पड़ाव डालना |
सीता की याद कर, लक्ष्मण जी के सामने श्रीरासचन्द्र
जी का शोऋविहल हो विज्ञाप करना | लक्ष्मण जो के
धीरज वंबाने पर श्रीतमचन्द्र जी का सम्ध्योपाप्षन
करना |
र (३
छटवां सग १३--४७
लड्ढा मे हनुमान जी द्वारा किए हुए उपद्रवों को देख,
रावण को, राक्षसों के प्रति युक्ति |
सातवाँ सग
रावण के बल पराक्राम की प्रशंसा करते हुए राक्षसों,
के उसको घीरज बँधाना । इन्द्रजीत का प्रताप वर न ।
आठवों सगे ५१७०-६७
रावण के झामने प्रहृश्त, दुर्भख, बज्रदृध्ट, निकुम्म,
वजहनु का अपने अपने बलवीय॑ की डीगे हॉकना |
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