श्रीमद वाल्मीकि रामायण युद्धकांड | Shrimadvalmiki Ramayan Yuddhakand (purvardha - Vii)

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Shrimadvalmiki Ramayan Yuddhakand (purvardha - Vii) by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ 9) बढ़ाने के लिए यह भी कहना कि अद्जदादि बानर लड्ढा को तहस-तहस कर डालेंगे। अतः सेना को युद्धयात्रा के लिए शीघ्र आज्ञा दी ज्ञाय | चौंथा सर २०--४७ सुओऔव के प्रति श्रीरामचन्द्र जी का यह कथन कि, युद्धयात्रा के लिए अभी मुहूत शुभ है । श्रीराम चन्द्र जी का सैन्य लड्ढा की.ओर प्रस्थान | शुप शक्रुनों का देख पड़ना । समुद्रतट ;पर पहुँचना, वहाँ सैन्यशिब्रिर की खापना । समुद्र को देख हरियूथपों का विस्मित होना । ५ पाँचवाँ संग ४७--४२ सागर के उत्तर तट पर सेना का पड़ाव डालना | सीता की याद कर, लक्ष्मण जी के सामने श्रीरासचन्द्र जी का शोऋविहल हो विज्ञाप करना | लक्ष्मण जो के धीरज वंबाने पर श्रीतमचन्द्र जी का सम्ध्योपाप्षन करना | र (३ छटवां सग १३--४७ लड्ढा मे हनुमान जी द्वारा किए हुए उपद्रवों को देख, रावण को, राक्षसों के प्रति युक्ति | सातवाँ सग रावण के बल पराक्राम की प्रशंसा करते हुए राक्षसों, के उसको घीरज बँधाना । इन्द्रजीत का प्रताप वर न । आठवों सगे ५१७०-६७ रावण के झामने प्रहृश्त, दुर्भख, बज्रदृध्ट, निकुम्म, वजहनु का अपने अपने बलवीय॑ की डीगे हॉकना |




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