गणित सार - संग्रह | Ganit Saar - Sangrah
श्रेणी : गणित / Maths
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
432
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना प्र
बेदाग ज्योतिप का एक युग ५ सौर वर्ष का होता था, जिसमे ६० सौर मास, २ अधिमास, ६२ चाद्र मास
ओऔर १८३० अहोरात्र या सावन टिन समझे जाते ये | एक युग में १९४ पक्ष और एक पक्ष से १५ तियियाँ
मानी गई थीं। इस अंथ के अतिरिक्त त्रिलोक प्रजति, स्ये प्रगति, चंद्रप्रजपति और ज्योतिष करण्डक तंथों
में ग्रीकपू्व जेन-ज्योतिष गणितीय विचार-घारा दृष्टिगव होती है ।
प्रोफेसर वेबर ( ४४०७७० ) के कथनानुसार से प्रशति ग्रंथ, वेदाग ज्योतिष के समान केबछ
धार्मिक कृष्यों के सम्पादन के लिये ही रचित नहीं हुआ, बरन् इसके द्वारा ज्योतिष की अनेक समस्याएँ:
सुलझाकर प्रखर प्रतिभा का पस्चिय विया गया ।
ईसा से ४०० वर्ष पूर्व के पश्चात् हिन्दू गणित पुनरुद्धार हुआ । उस समय सूर्य सिद्धान्त और
पैतामह सिद्धान्त लिखे गये । गगित दो मांगों मे विमक्त हुई, एक तो अकग्रणित तथा बीजगणित और
दूसरी ज्योतिष तथा क्षेत्रणणित । वैसे तो, बहुत पहिले से भारतीय गणना का आधार १० था] जब ग्रीक
१०४ तक ओर रोमन १०४ तक के ऊपर की गणना जानते न थे, तब्र भारत में अनेक सकेतना स्थानों
का शान था | ईसा से ५०० वर्ष पूर्व से ही शतकमान पर आधारित सख्याओं के नामों की श्रेणी को जारी
रखने के प्रयज्ष हो छुके थे । ईसा से १०० वर्ष पूर्व के ग्रथ अनुयोग सूत्र में (२)१५ तक की संख्या का
उपयोग हो चुका था। इसमे स्पष्ट रूप से २ को आधार चुना गया था। जब स्थान-मान का विकास हुआ
तब इकाई से लेकर दशमलव मान पर संख्या को छिंखने के लिये संक्रेतना स्थान दिये गये ।
शत््य प्रतीकर्छ का उपयोग पिंगल ने ( ईसा से २०० वर्ष यूर्व ! ) अपने चाँदा सूत्र के छन्हों में
किया दै। ईसा के कुछ सदियों पश्चात् की ( बक्षाली गाँव की खुदाई से प्राप्त ) भोज पन्नों पर लिखित
एक पोथी में भी अक शैली का प्रयोग देखा गया है। इसमें गणना में झून्य का उपयोग हुआ है।
शृज््य प्रतीक सद्दित स्थान-मान संकेतना पद्धति, गणित के सभी आविष्कारकों द्वारा बुद्धि की प्रगति के लिये
दिये गये अंशदान में उच्चतम कोटि की हैं। यह अभी तक अजात है कि दशमलव स्थान-मान पद्धति का
जन्मदाता कौन विद्वन-विशेष्ठ अथवा ऋषि-मण्डल था | साहित्यक् तथा पुरालेख-सम्त्नन्धी प्रमाणों से यह
निश्चित किया गया हैं कि यह पद्धति २०० ई० पू० के लगभग भारतवर्ष मे जात थी । इस नवीन पद्धति
के प्रयोग का प्राचीनतम लिखित प्रछेख ५९८ ई० का गुर्जर का दान पत्र है। यहाँ यह उल्लेख करना
आवश्यक प्रतीत होता है कि सेन्द्रल अमेरिका के माया लोगों की तिथिपत्री में भी शून्य आया है ।
ये २० को आधार लेकर कोई स्थान-मान पद्धति का उपयोग करते ये । यह माया गणना ईसा से २००
से लेकर ६०० वर्ष बाद की मानी गई है प
ईसा की पोचवी सदी मे जगत् प्रसिद्ध गणितश्ञ आर्यनट पटना में हुए । इनके पहिले पौलिश,
रोमक, वाशि8, सीर ओर पेतामह नाम से ज्योतिष के पाच सम्प्रदाय प्रचलित ये । शेमक सम्प्रदाय यूनानी
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४०, 28, 9. 9047, ( 1029 ) पर उल्छिखित लेख देखिये ।
| स्थान-मान संकेतना के संदंध में न््युगेवाएर (7९०ए९७०७घ९४) का असिमठ उल्लेखनीय दे
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