श्रीविचारदीपक | Shreevicharadeepak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
152 MB
कुल पष्ठ :
269
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_यात्राहि करी होगी तो तहां कहेहे ( न तीथानि गता-
नि) कहिये अंतःकरणकी शुद्धिद्वारा मोक्षपदके देने-
हारे जो प्रयाग काशीआदि पतित्र प्रसिद्ध तीथेहें ति-
नके समीपभी मेनें कबी गमन नहि किया है ॥ यातें
स्व पुरुषार्थोकरके शून्य होनेतें मेरा सवे आयु ( बृथा
गत॑ ) कहिये इथाहि व्यतीत हो गया इति ॥ १२९॥ .
पुनः जो कोई कहे कि उक्त सत्संगादिंक नहि किये
तो कबी एकांत बेठकरके हरिका आराधनहि किया
होगा यातें तिसकरकेहि तेरा कल्याण हो जावेगा तो ._
तहां कहेंहे || चतुझ्ज इति--
.. चतुझ्ेजश्चक्रमादायुधः पश्ष-
.. निरंजन) स्वभवारतिमंजनः ॥
. स्छतः कदापीह सया न माधघवो..._
वृथाखिले से खलु जीवित गतम्॥ ११॥
कप दीका--( चतुझुजः ) कहिये केयूरकटकादि भूष-
ररके शोभायमान और जालुपयंत लंबी चतुझ्नुजा
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