योगदर्शनम् | Yogdarshanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२८ . यींगदरनत
विषयवती वा प्रशत्तिरुत्पन्ना मनसः स्थिंतिनिबेन्धेनी३२५॥
दो०-ओरों कहतत उपाय अब, विषयावती सुमंधि ॥
चितकी वृत्ति निवृत्ति कर, मनंको रांखत बैंधि ॥
का जी के. ७50
अथ-जरभी 2टपाय अब ैित्तकी वृत्तियोंके निरोधका कहते ह कि विषयवती
अवृत्तिके उत्पन्न हो जानिसेभी चित्ते ध्थिर हो जाता है ॥
भा. चो.-नासिकाग्र संयम ने करई। साक्षात् होत सुगंधी तबहीं ॥
जिहा अग्र मध्य ओर मूंछा | रसस्पशे राब्द असुकूछा ॥
हुई प्रसन्न संयम अभ्यासा | विषयवृती जननी विश्वासा ॥।
शाद्न कथित अनुभव कर जोई । श्रद्धांयुत चित स्थिर होई
अथ-नासिकाके अग्रभागमें संयम करनेसे सुगंधिका साक्षात् होता है जिद्नाके
अग्रम संयमसे रस, मध्यम संयमसे स्पशे, मूलमे संयमसे शब्दका साक्षात्कार होनेसे
इसका नाम विषयवतत प्रव्वात्त हे । इससे जब सुर्गाधे आदिकका साक्षात्कार हो
जाता है तब विश्वास हो जाता है कि स॒क्ष्म पदार्थेमेंभी संयम किया जावेगा वों
उसकामी साक्षात् हो सक्ता हैं इस विश्वाससे अत्यंत सूक्ष्म जो ई वर है उसमें मनको
जोडकर साक्षात् करानेसे यहभी चित्तकी स्थिति करनेवाली है अथवा शास््रमे कहे
ऐ छा
हुए किसी अनुभवसेमी योगीकी अबृति इंश्वरमें होती है ओर इंश्वरका साक्षात् होने वे
माक्ष होती हैं इसीस विषयवती प्रवृत्ति मी मोक्षका एक उपाय है ॥ ३५ ॥
विशोका वा ज्योतिष्मती ॥ ३६ ॥
दो०-विज्ोका वा ज्योतिष्मती, चित्त स्थिरकर सृल-।
दुखहर करत प्रकाह्न अरु, संवित प्रवृति अश्वूल ॥
अध-विशोका और ज्योतिष्मती यहं दोनों रूप संवितके है विशोकासे दुःखोंका
माश होकर शोकरहित होता है जोतिष्मतीसे प्रकाशकी प्राप्ति होती हे ॥
भाष्य दो ०-हूदय मध्य जो कमठ है, ताहि अधोप्तुख जान ।
रेचकृतें कर ऊपप्ुख, सुपमन संयम मान ॥
मनकर संवित होत दे, गस स्वंरूंप कर ध्यान ।
सू्यचंद्र उडुगंगनकी, ज्यीतिं परत पहिचान ॥
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