प्रमाणमन्जरी | Praman Manjari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किश्वित् प्रास्ताविक
मै
सदेवाचार्य प्रणीत प्रमाणमझ्जरी नामक अस्तुत प्न्य वैशेषिक दर्शनका एक
प्रमाणभूत और प्राचीन प्रकरण अन्य है। इस ग्रन्थका सूलमात्र ही अमी तक
ग्रकाशमें आया है; लेकिन व्याश्यादिके साथ यह कहँसे प्रकाशित नहीं हुआ । आधुनिक
विद्वानोंकों तो इस अन्पका परिचय मी शामदद नहीं है। राजस्थान, मध्यभारत एवं गुजरातके
प्राचीन पुस्तक भण्डारोमें इस अन्यकी अनेक दस्तलिखित प्रतियां प्राह्त होती हैं ओर इस पर
रची हुई मित्र मिन्न विद्वानोंकी व्याख्याएँ आदि मी यत्रतत्र उपलय्ध होती हैं । इससे ज्ञात होता
है कि ग्राचीम कारमें, राजस्थानमें इस ग्रन्यके पठ्न-पाठन ओर अध्ययन-अध्यापन
भादिका यथेष्ट प्रचार रहा है | *
कोई १२ वर्ष पहले बंगईके निर्णपसागर ग्रेसने इस अन्यका मूलमात्र छाप कर कट
किया था, जिसे देख कर इसकी व्याख्या बगैरहके विधयमें कुछ जानकारी प्राप्त करनेकी हमें
हल्छा हुई ! सन् १९४३ के आएंगे जेलतमेरके ज्ञान भण्डारोंका निरीक्षण कामेका हमें
प्रसक्ष श्राप्त हुआ उस समग्र पहांके एक शान मण्डास्में बहमद्रमिश्रकी' व्यास्यावाडी इसकी
१ इन बलभद्रमिश्रनने केशव मिश्रकी तर्कभापापरसी तर्कमापा प्रकाशिका नामक उंश्षिप्त परु सुन्दर
व्याझ्या बनाई है जिसकी एक प्रति पूनाके भाग्ड/रकररीएचे इन्स्टीट्यूटमें संरक्षित, राजकीय प्रत्य सेमहमें, सुर
क्षित है । इस्त व्याख्याके आद्यन्त पथ इस प्रकार हैं। *
भावि-विष्णुदासवनूजेन बल्मद्वेण तन््यते । ध्याखा विष्णुपदाम्भोज तर्दभाषाप्रकाशिफा ।
अम्त-विष्णुदासतनूजेन माध्वीपुत्रेण यक्षतः । अकारि वसद्वेण तकंसापाध्रकाशिका (|
इन थलभद् मिश्रका समयनिर्णायक कोई दिशिएट आधार अभी तक शात नहीं हुआ है । परंतु भावनगरके
जैन शाव भण्डारमें प्रस्तुत प्रमाणमशरी व्यास्याकी एक प्रति हमारे देखनेमें भाई है उतका हिपिराल भादि इस
प्रकार ढिखा हुआ है।
संबत् १६६७ बर्षे भाववासुदि १४ दिने बार सोमे प्रती पूरी क्रीघी । भोद ज्ञातीय पडया भवान
सुत पैड्या मेघजी ।
हस पंस्िसे इतना तो निश्चित ज्ञात हो रद्ा है दि वि. से. १६६७ के पहले ही बठमद मित्र कमी हो
गये हैं) इसके पूर्दकी समयमय्यादा छा विचार काने पर, यह भी निश्चित रूपसे कहा जा सदता है कि तर्कभाषाके
कतो प॑. केशवमिथ्रके बाद ही बलमद्र मिश्र हुए हैं। केशवमिभ्रका समय, विद्वानोने प्रायः ईखी १३०० के कुछ
यूवैवर्ती अनुमानित किया है । क्यों हि तकमाणके पहछे टीसादर वित्रभट हैं जो इखीकी १४ थी शताब्दीके
पूर्वा्म हुए हैं; इसरी ओर केशवमिश्रने अपने प्रन्थ्॑म प्रतिद्ध मद्ानेयबिक रंगेशकें विचारोंका अनुसरण किया
है, भतः गंगेशके बाद ही फेशवर्मिश्रका होता सिद्ध होता है। गंगेशोपाध्यायका समय विद्वानोंने ई. स. 4१५०-
१२०० के लगभग अतुमानित किया है; अतः इस तरद्द ई. से. १२००-१३७० के बीचपें केशवर्ि्रद्य होगा
मानना संगत छगना है।
हमारा अनुमान दै कि प्रमाणमश्ञी और तर्भाषाके टीडाकार ये वलमद्रमिश्र वे ही हैं जो तर्माषाडी
एफ दूसरी व्याख्या करनेवाढे गोक्धत मिभ्रके पिदा थे। गोवदन मिश्रते अपनी तर्ईधरापाप्रकाश वागक
स्यास्यार्मे अपना परिचय इस प्रकर दिया है-
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