अथ श्रीमद्णुभाष्यम | Ath ShriMadnubhashyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री कृष्ण्वल्लभाचार्यः - Shree Krishnallabhacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर
सप्रकाशे अणुभाष्ये ।
कप
अथातो बह्मजिज्ञासा | १ ॥
इद्मत्र विचायेते । वेदान्तानां विचार आरम्भणीयों नवेति |
अलडुसबेन्तु मत्खान्त मायावादतमोहरा: ॥ ६ ॥
तत्वुत्नानू सह छुताभानजगुरून श्रीकृष्ण चन्द्रा हयान् ॥
भत्तया नाम पतामहं यदुपति तात च पीताम्बरम ॥
चन्द च त्रजराजमन्वयमर्णि यद्दोचिषा माहशों-
5प्यासीन्मूभिि कृपापरः प्रशुवर. श्रीवालकृष्णः खयम ॥ ७॥
भ्रीवल्लभाचायेपद स्वुजाते भक्तया मुद्राष्त्तह्ादि संनिवेदय ॥
भाष्यप्रकाशे प्रयत्तेशतिदीनो ।निःसाधनस्तत्करुणावलेन ॥ ८ ॥
आचायेवाच: प्रणमामि भाष्यसुबो घिनी सवा इतरास्य यास्ता: ॥
मत्खान्त आगत्य क्ृताप्लुवास्ता मदीयवाचां रचयन्त्वलडुगत म॥९
अथ स्ालोकिकान्ुभावप्रकटनहद यस्य भगवत आज्ञया तद
थेमाविभूताः श्रीमदाचार्यास्तस्यानुभावस्य सर्ववेदान्ततात्पयगोचर-
त्वज्ञापताय वेदा्थेंतामरसतरणोंभेगवर्तों वादरायणस्य सूत्राणि व्या-
फरिष्यमाणा: ' सूत्नार्थों चण्येत यत्ध वाक््येः सूतानुसारिसिः । स्प- |
दानि च वण्यन्ते भाष्य भाष्यवदों विदुररिति भाष्यलूक्षणात् खु-
त्वोपन्यास एवानुसरणसिद्धे: खक्नरादित एवं साष्यत्वाय सूत्नीया-
थशच्देनिव मड़ालसिद्धेश्व सूत्रमेवादों पठन्ति # जथातों ब्रह्मजिन्वा-
सेति # नच मड़्लाचरणान्तराददंनाच्छिएाचारजिरोधः शडूतीयः ।
महाभाष्ययोंगभाष्ययोग्रन्थकृत्छृतस्यथाथशब्दातिरिक्तस्थमड्गललस्या-
द्शनन, शावरभाष्य च अथातो धम जिज्ञासा इसने सूत्॒मवोपन्य-
स्य साध्यारस्सद््शनेन च विरोधामावादिति । अस्यारम्मसूत्रत्वाद-
धाधिकारवषयसम्वन्धप्रयोजननिरूपणद्वारा शाख्रारम्स:ः समथ-
नीयः: । झासप्रदृत्यावश्यकत्वहेतुरूषपा सड्ातिश्व निरूपर्णाया। !
न््यथा प्रक्षावत्पतृ त्यभावन शाख्रवयध्य स्यात् | शासत्स्य चधत्वमाप
चिचारणीयम । अन्यथा बेदान्तानुप्युक्तत्व, प्रामाणिकानाद्रणीयत्वं
व्यू स्थात् | नदिदं सर्वे हृदि रत्वा भगवता श्रीवाद्रायणाच्रायणद-
मधिकरणरूप॑ सूत्रे प्रणीयते, न तु ब्रह्मविचारप्रतिज्ञामान्रमत्र क्रिय
त इत्याशयनाहुः # इृदमित्यादि #
User Reviews
No Reviews | Add Yours...