वामन पुराण भाग - 2 | Vaman Puran Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
495
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो शच्द
वामन पुराण के द्वितीय खण्ड मे दैत्यवंश के पूर्व पुछ्षो की
फथाएँ मुख्यरूए से कह्टी गई। क्सि प्रकार 'मोगवादी” जसुरगण आरम्म
में ठपस्पा' करके देव शक्तियों (शिव, ब्रह्मा आदि) से वरदान श्राप्त
फरते थे और फिर संसार क« आधिपत्य प्राप्त करने के लिए देवताप्रों के
साथ संघर्ष करने लणते। यद्यप्रि भारतीय-धर्म के अनुणायी अध्यात्म
वादियों ने दिवासुर सग्राम' क्नी कयाओ को सात्विक और तामधिक
शक्तियों का सधप माना है, पर पुराणकारों ने उनको बड़ों बड़ों उपा-
ख्यातो का रूप देकर ऐसी रोचक कथायें लिखी हैं कि श्रोतागण उन्हे बडी
संलग्नता से सुनते हैं और उनसे घ॒मं की मद्तत्ता बोर धरम के ज्ञाश की
शिक्षा ग्रहण करहठे हैँ । ज॑सा हमने इस खण्ड के अन्त में दिये गये “उप
सहार' में ,बतलाया है इन कक््याझो में अवश्य 'हो कल्पना का चहुत
प्धिक पुट है, तो भो उनका सूत कुछ व दिक वर्णनों ओर कुछ ऐतिहा-
सिक्र धटनाओ से लिया गया है । जँसा हम अन्यत लिख चुके हैं किसी
समय यहाँ के निवासी समुद्र पार मैसोपोटामियाँ झ्लादि के प्रदेशों
को पाताल लोक! को तरह मानते थे नौर वहाँ के रहने वालों को
असुर कहा पय्रा था। वे असुर समय-समय पर भारतवर्ष पर आक्रमण
करके यहाँ प्रपता राज्य स्थापित करने को चेष्टा दिया करते थे, पर कुछ
समय पश्चात् उनको पराजित होकर फिर अपने मूल देश को ही वापस
घला जाना पढ़ता या। इस प्रकार की घटनाओ में सबसे अन्तिम घटना
बलि राजा वी हुई जिसरो 'बामन देव ने पराभूत करके स्थायी रूप से
4वावाज' में ही रहने का आदेश दिया।
चाहे ये घटनायें देश के एक भाग मे ही सीमित रही हो, पर
उनकी चर्चा दूर-दूर तक फैंसी ओर जिस प्रकार ऐसे मौध्विक वथोपप॒थन
परिवर्तित द्वोते-दोते एक नया हो रूप घारण कर लेते हैं उमी प्रकार उस
समय मे कयाकारों' ने इसमें वीर, म्ए सार, गदुभुत रपो का ध्मावेश
हरके एक नहीं पवा्तों उपाब्याव रच डाने। 'वामन पुराण' के इस
User Reviews
No Reviews | Add Yours...