लोकतंत्र की कसौटियाँ | Lokatantra Ki Kasautiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सामाजिक परिवतेन की दिशाएँ और लोकतंत् की कप्तौटियाँ / 4
उसी प्रकार से जैसे एक समय में जयप्रकाश जी ने जब देखा कि जगह-जगह
कमेठियाँ बन रहो हैं, तब उन्होंने कहा कि यह जनसंधर्ष समितियाँ ही इन्क्-
लाब की वाहक है । इस त्तरह से सब जगह यह सोवियत बनी ।
दो-तीन बरस में जब लेनिन की संस्था संगठित हो गई, तो सोवियत भंग
कर दी और एक नयी सेना संगठित हुई जिसमें सोवियत का नाम-निशान
नहीं था। रूस की लाल सेना (रेड आर्मी) को बनाने का काम ट्रादृस्की ने
किया--सोवियत को भंग करते समय उस लाल सेना को लेनिन ने यह कहा
कि यह राजनैतिक है और देश का कल्याण करेगी-यह आर्मी नही है ।
फिर इस नाम पर सोवियत रिपब्लिक जो है, आमेंनिया की बन गई, जाजिया
को बन गई, युक्रात की बन गई और ये सोवियत रिपब्लिक मिलाकर गूनियन
आफ़ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक बन गई, और फिर सह बताया गया
कि इसी प्रकार यह नीचे तक सोवियत बनेगी । आज की स्थिति में यह है कि
विकेन्द्रीकरण के उस सिद्धान्त को भी जो थोड़ा-बहुत लेनिन ने थोड़े समय
में चलाने का प्रयास किया था, क्योंकि उसमें वह प्रभाव नहीं आया, इसलिए
उसको उतने में खत्म करके स्टेलिन को दे दिया गया । क्योकि जो समितियाँ
बनी थी कि यह आर्मेनिया के लोगों की जनसमिति है, यह वस्तुतः नेशनल
नहीं हो सकती है जिस प्रकार से कि जो मुख्यमंत्री बनता है बिहार में या
उत्तर प्रदेश में, जब दिल्ली उसको नामज़द करेगी तो कहने को तो रहेगा
कागज पर कि यह बिहार के लोगों का प्रतिनिधि है, लेकिन असल में होगा
नहीं | तो स्टेलिक का समय आते-आते वह सोवियत का आदमी धीरे-धीरे
उससे भी जबर्दस्त कैन्द्रीकरण का रूप हो गया । अब यह प्रश्न पूछने वाले
यह प्रश्न पूछने लगे कि बस्तुतः वह जो सपना था, रूपी क्राति का, कि हम
लोकतंत्र को नीचे तक ले जायेंगे, बह पूरा हुआ भी कि नहीं ? फिर आज
बहुत से लोगों की चीन से इस बात पर शिकायत है कि यह सब जो संशोधन
सागू है, फिर जो माक्सेवादी सारी दुनिया में है कि वह द्रादुस्की जिसने शुरू
किया सोजियत का खात्मा; लाल सेवा से जब उसकी ठकराहुट स्टेलिन से
हुई, तो द्रादृश्की ने तमाम किताबें लिखी, यह दिखाते हुए कि कैसे जो मार्क्स
बाद का लोकतांतिक रूप था, नीचे तक जानेवाला, उसे स्टेलिव ने तानाशाही
के हाथ में सुपुर्द कर दिया, नोकरणशाही के हाप में सुपु्दगं कर दिया ओर
धीरे-धीरे जो नौकरशाही थी, वह ऊपर तक केरिद्धित होते-होते कुछ लोगों के
हाथ में सत्ता चली गयी, सगभग उसी प्रकार जिस प्रकार का आरोप आज
माओ-त्से तुंग पर है, आज के चीन पर है कि जिस घीज्व को हमने बहुत
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