मोड़ पर | Mod Par

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Mod Par by भगवत शरण - Bhagvat Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माड़ फ/ 37 मौन कान तोडे मान ? मान जो एक घाव मा इतना रिसा ह दश के पद्चिह्र अकित हो गए हें मान जा श्रद्धा से लेकर अहम्‌ म चकचूर फेला ह इडा तक - एक सीमाहीन अतठर को समेट , मान एसी ध्वनि « बनाए शब्द को जड बन चुक इतिहास अब झुठलाये कान ? कान ताड मान ? मान जा जलजात की नालों सा उलझा मूल में जा इन्द्द, बाहर कव ह दिखता ? दृष्टि में स्पश मे परिवेश म - गूँजती जिसकी व्यथा स्वरहीन होकर कोहरे सा आवरण इसका विपला बात के आकार धुँधले मन कसला संगोतमय रसधार लाए कान ? अत्म्‌ का पवत हटाएं कौन ? कान ताडे मान ? 2897 सस्कृत्ति अब हम सस्कृति जाने की कुछ करने को - अनुफरण हो सही - कोइ जरूरत नहीं ।




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