श्रीमद्वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड | Shrimadvalmiki Ramayan Yuddh Kand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
738
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४५)
पारिज्ञाततरुघुल्नवासिन॑
भावयासि पचमानननन््द्नम् ॥ १७॥
यत्र यन्न रघुनाथकीतन॑
तन्न तन्न रृतमस्तकाअलिम् ।
वाब्पवारिपरिपूर्ण लाचन
मारुति नमत राज्ञसान्तकम् ॥ १८ ॥
चेद्वेथे परे पुंसि ज्ञाते दशरथाक्मजे ।
घेद3 प्राचेतसादासीत्सात्षाद्रामायणात्मना ॥ १६ ॥
प्रापदामपहदर्तारं दातारं स्वंसम्पदाम्।
लोकामिराम॑ श्रीराम भूये। भूयो नमाम्यहम् ॥ रे० ॥
तदुपगतसमाससन्धियेगं
सममधुरापनताथवाक्यवद्धम् ।
रघुवरचरितं पुनिप्रणीतं
दृशशिरसश्च वध निशामयध्वम, ॥ २१ ॥
वेदेद्दीसहित॑ छरहुमतल्ले दैमे महामण्डपे
मध्ये पुष्पकमा सने मणिमये घीरासने छुस्थितम्।
धग्रे वाचयति प्रमश्ननछुते तत्त्वं सुनिभ्यः पर
व्याख्यान्तं भरतादिमिः परिदृ् राम॑ भजे श्यामजग ॥२२॥
चन्दे पनन््य॑ विधिभवमहेन्द्रादिदृन््दारकेन्द्रे
व्यक॑ व्याप्त स्वगुणगणतो देशतः कालतश्च ।
घूतावर्ध सुखचितिमयेमंडलेयुंकमड़ेः
,सानांथ्य ने विद्धद्धिक ब्रह्म नारायणाख्यम ॥२३॥
भूषारत्नं भुवनवत्लयस्थाखिलाश्चर्यरत्नं
', ' ज्ीलांख्नं जलधिदुदितुर्देववामोनिरलम।
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