काला पानी | Kala Pani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Kala Pani by वीर सावरकर - Veer Savarkar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वीर सावरकर - Veer Savarkar

Add Infomation AboutVeer Savarkar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
महंत योगानंद का भजन-रंग ११. पड़ती थी । मेंक की आवाज दूसरे को सुनाथी नहीं पडती थी । खुद की आवाज तक खुद को सुनाभी पड़ती थी या नहीं, किसे मालूम * मितने में अस अचे चढ़े हुं झातकठ-निनादी स्वर को कम-कम करते हुमे पद्य के चरण योगानदजी अकेले ही जितनी सरलीन मुद्रा में दोलने लगे कि शिष्यादिक भजनीको नें झाजो का कोलाहल वद कर चिपलियो (करताल )' चजाना शुरू किया, ' तुलसी म गन भये हरिगुण गानों मे ” जिस चरण को लौटपौट कर सुकुमार स्वर में गाते हुओ योगानद खडे हो गये ! योगानद जी भुस पद का अर्थ नहीं वतलाते थे। पर जिनको वह सम- झमे आता था भुन्हे भुस भजन में अर्थों के पोथे के पोथे सुनाओी देते थे ! जिस जीवन की साधना हरकोओ अपनी अपनी रुचि के अनुसार करता है, हर कोगी गआानद प्राप्ति के पीछे पडा हुआ है, कोठी भोगद्वारा-कोओ योग द्वारा 7 जैसी जिसकी जितनी मनकी मुन्नति, वैसी अुसकी रुचि ! ' स्वभावों मूरध्ति तिष्ठते ! ' तब वाह साधनों का वाद चाहिये ही काहे को * तुम्हे जिस मे: आनद की अनुभूति होती हो, तुम अुसमे रमो । औरो को जिसमे आनद: प्रतीत होता हैँ वे ुसमे रमेगे । हा मेरे वारे में पूछते हो, तो “” तुलसी मगन: भये । हरिगुण गानों में । हरिगुण गानों में । हरि गुण गानों में । ” कोओ आअचे-अचे चदन के पठगों पर गादियो और गदेलो पर लोट पोट होने के लिये खटपट करते हैं, अुन्हे मुस में आनद प्रतीत होता है ' पर कोभी विद्यमान पलूग ही नहीं वल्कि कामुक पत्नियों को भी छोड कर वुद्ध भगवान्‌ के समान वोधिवट के नीचे, खुले प्रदेग मे जमीन पर ही पडकर सो. रहते है, भुन्हे गाढी नींद वहां लगती है ! गाढ निद्रा का लगना ही यदि ध्येय हो तो वह जिसको जहाँ लगे अुसका वही सोना योग्य है ! मेरे अपाय का अवलवन तुझे करना ही चाहिये जैसी हठघर्मी क्यो ? कोगी हाथीपर, कोओऔ घोडे पर, कोओ पालकी पर सवार हो बडी दान से जितराता हुआ चलता हैं, जुन्हे गुसमे ही आनद मालूम पडता हूँ! मुनका चही स्वभाव है! पर जिस साधु को देखो, भुसे हाथी पर चढना फाँसी पर चढनें जितना ही दुखद है! हम पालकी में वैठें और दूसरे भुसे ढोयें जिस वृत्ति की.असे ध्म अनुभव होती है ' जितनी अधिक कि, पारकी का स्प्ण होते ही अुसे अंगारे के स्पर्श की, प्रतीति होती हैं!




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now