योगवासिष्ठ और उसके सिद्धान्त | Yogavasishth Aur Usake Siddhant

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Yogavasishth Aur Usake Siddhant by भीकनलाल आत्रेय - Bheekanalal Aatreya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २६ ) विषय पृष्ठ १४--अज्मा ३०४ ( १ ) जगतकी उत्पत्ति ब्रह्मासे हुई है ३०४ ( २ , ब्रह्माका स्वरूप मन है ३०४ ( ३ ) ब्रह्माकी उत्पत्ति परम ब्रह्मसे होती है ३०५ ( ४ ) ब्रह्मका यह स्पन्दन स्वाभाविक है ३०६ ( ५ ) ब्रह्मम्रे स्पन्दन होना उसकी अपनी छलीछा है. ३०६ ( ६ ) ब्रह्मका स्पन्दन त्रद्मसे अन्य सा रूप धारण कर लेता हे ३०७ ( ७ ) ब्रह्मा ( मन ! ब्रह्मकी संकल्प शक्तिका रचा हुआ रूप है ३०७ ( ८) ब्द्याकी उत्पत्तिका कोई विशेष हेतु नही है... २०८ (९ ) ब्रह्मा कर्मे-बन्धनसे मुक्त है ३०८ (१०) ब्रह्मका शरीर केवल सूक्ष्म है, स्थूल नहीं ३०८ (११) ब्रह्मा ही संसारकी रचना करता है ३०९ (१२) ब्रह्मासे उत्पन्न जगत्‌ मनोमय है ३१० (१३) हरेक रष्टिनई हे ३१० १५--शक्ति ३११ ५ १ ) ब्रह्मकी अनेक शक्तियाँ ३११९ ( २ ) ब्रह्मकी स्पन्द्नशक्ति ३१२ ( ३) प्रकृति ३१२ (४ ) शक्तिका ब्रह्मके साथ सम्बन्ध ३१३ १६--प रम ब्रह्म ३१६ (१) ऋषा ३१६ ( २) ब्रह्मका वणन नहीं हो सकता ३१७ ( ३ ) नेति नेति ( त्रह्म न यह है और न वह है). ३१७ ( ७ ) ब्रह्मको एक अथवा अनेक भी नहीं कह सकते ३११८ (५ ) ब्रह्म शुन्य है अथवा कोई भावात्मक पदार्थे है यह भी कहना कठिन है ३१८ ( ६ ) ब्रह्मविद्या ( ज्ञान ) ओर अविद्या ( अज्ञान ) दोनोंसे परे हे ३१९




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