भारतीय - आर्य भाषा | Bharatiy - Aarya Bhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
426
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका गे
मोर, भौती के मति निकट उदयपिरि में सथोक से एक शताम्दी बाद फारबेट कौ
अ्रशम्वि यही विफ्रपताएँ प्रट्षि्ध करडी है;
औषोभिक स्वानीमता कौ अपेल्ता मौर बातें भी बिश्वारफौय हैं, किस्तु समृचे
टरबिडइ प्रदेश में हृप्णा के सिस्त भाग में हिसामेज धारण किय हुए स्यूपों की भाँठि--
जिनर्म ९ मौए यो हैं-“[ंसमशा समुद्दाय का अम्दित्व बस जाता की मार संदेश करन
के हिए पपेप्ट होगा ।
दो प्राौन उत्कोर्य सेश्वों से मह तुरंत शात हो जाता है कि मध्यकाणाम भारतीय
मापा बिमाजित थी मौर गुछ मापाएँ अपत प्रणात शेभों से दाहुर ईस यमी पी । डिल््लु
सके मे विस्तार कै इस केर्दों को गताता अस्तनग है। केबक मागपौ का विस्तार स्पष्ट
है. इय श॒प्टि से अमौऱ कौ दोसी को, जिसके जिंदल पश्चिम में दिएठी मौर उसके बाट
कक मिरते हैं, पूर्दी कहता उचित होपा। अम्य सामप्री बिमाजन के कैक्छ मीन
प्रमाण दी है, और स्मानीयदा कौ गयी समस्याएं प्रस्तुत करती है।
शौर्दों दी कृपा सै, हमारे पास उत भाषाओं छे संदघ में ढई प्रमाण मिरदे हैं जो
ऐणा प्रतौद द्ोठा है, बैयाक रभों हारा स्पदस्दित सही हुई थो फिसी मी हाकर में एपा
की बाटौ बासे मारत पे जायी हुई मापाओं द्वारा परिमाजित मह्ठी हुईं। मफ्तम के पश्चिम
में---हाहबारुगढ़ौ के मूमि-माय में--अनेफामेक कुपाष शिक्ताटिसा का उल्कज़ किया
भा घुरा है ऐिल्दु नो दृक्षित्र में मोहजोदड़ो ढक और पूर्व में मधुरा तक मिसते हैं
दे प्रतपक्षण' खापस म॑ संबंधित हैं, जा एव भोर धहराड़गढ़ी के घिछासंख दी शिक्षाट
में और दृएरी शोर दुशुरु गी हस्तशितित पोबी मे, ईसत्री सभ् के लगमंग
पंगाद से खोवाय शाये हुए एश पर्मपइ के रुंश अंत में कुछ विस्तार कौ दृष्टि थे
जप्री समय तुक्स्तात में, निय (017०) मौर क्षोपनोर (1.09-०४००) तफ़ प्राप्त
अमिस्तदधों डौ मापा कौ लिलाइट में स्पप्ट--म,ौर संभवत कुछ-कुछ उस छि्षम
की शिपि पर निमे९---है। हिस्तु मह खंतिस क्योंकि बह स्थवश्ारिक बातों की मापा
है मगुश्य सौए साहिए्प स स््वह॑त है औरा % संसर्ण से बहुत विकसित हुई है. इसके
वदिएकत छुछ स्पप्ट भश्तर हैं. कसोक बाक्ा मभिकरण एड्बचन -मस्पि फिर सर्प
घासापओं में पह्दीं पाया जाता बौर भुपाणों का -ब(पूं)मि निम का -झुमि भौ
इम्पपद में बिसम दौर्म रूप के स्पान पर संईएकारक हो जाता है गहीं है. जियसे
भा» अस्मिस् राई परमहि अ--इस शोक में तथा बूसर में--रे गिस्द्ध जप्मि
छोर पर्स हाता है। झेशस हु दुषुर में जनुगासिक के गाद मामे पाही स्पर्श
सदति का मुखरौकरण हो बाता है जब कि मधोर के पिक्ताहुों में पूर्चाछिक
इृश्स्त दि शबबा -तु में कृपा % में -द(रुरिठ) मं है तो हस्यशिकित पोगी
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