अणुव्रत - दर्शन | Anu Vrat - Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि
आन्दोलन (की लक्ष्प
जीवन के मूक््यांकन का दृष्टिकोण क्षोर इसकी उच्चता फा
मापदण्ड चदछे--इस उहेश्य से झ्णुद्दत-मान्दोन चछा क्षौर
ग्रह सक््य की श्रोर सह गति से वडू रहा है। चरित्र का
न्यूनतम विकास सघमे हो, इृदय की भद्धा से हो-यद्ट 'अणुक्तत'
का साम्प-स्वरूप द। झ्ान््दोठन के प्रबतक की यह मान्यता
है कि भारिध्रिक उशता के बिना सानव समाझ फी सभ्यता
ओर सस्कृति उप नहीं वन सकती ।
बैमक्तिफ सीयन को पवित्र घनाए रखने की भायना के
बिना भरिश्र विकास नहीं द्यो सकमा।
पैग्नक्तिक चरित्र की हच्चरता विद्दीन सामुदायिकता जा बढ़
रही है, वह गमीरतम खतरा ६।
सयगमद्दीन राष्ट्रीयवा की माबना भी स्पष्टरा है।
संग-सेद और जाति-मेद के श्राघार पर जा उच्चता कौर
सोघता की परिफस्पना ई, यह भी सदरा ई।
अधिकार बिस्तार फी मायना त्यागे पिना निद्नाश्मीकरण
की धर्पाए चठ्ध रही हैं पद मी खतरा है।
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