मेरी आँखों से | Meri Ankhon Se
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गये कि अनजाने में ही सीढ़ियों के दौच बने कमरे में वे हर गये थे। बस
इसी लज्जावश वह भ्रव तक ऊपर नहीं गये थे 1
अब शचिनाथ ने बाकी बची सीढियों को पार किया और परर्छुट स्वर मे
चिल्लाये, 'क्यों ? मेरे लिए चाय का पानी क्यों रखा ? मैं खूद णीतत होफर
लौटा हू न! इसीलिये मुझे वर्फ डालकर शरबत-वरबत देने पी जरूरत नहीं
समझी । क्यो २!
अ्रपनी आ्रावाज अपने ही कानों में बहुत भद्दी और बेगुरी लगी शविनाथ गौ॥
सुफ्मा को भी लगी ?
फिर भी रबर तो था ।
स्वर जिससे सहारा मिलता है ।
स्तब्धता भयकर होतो है । शब्दहीनता प्रेत की तरह गला ददाते वी श्ाती
है । सुषमा अपने बढ़े भाई की प्रावाज सुनकर दिग्मत बर पाये बढ़ी, श्स्दुट
स्वर में चोली, 'रात हो गई है न, इसीलिये--
*हुह, इसीलिये ! तो इसका मतलब है कि दिन भर मेरे गले में को शोवल
जन ही दालता रहा है न
सुधमा ने मानो अपने भाई के सूखते गले को सदगृूस ढिया, बोडी, प्रमी
सोती हूं ।'
हद छाप री
सुप्रमा ने और नी एक बात बड़ी, बहुठ ही प्रम्डुट स्वर
दात टसलिदे कही थी हि दे लोग भी बाद ही कटा बढ:
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झररण छट्ट
1 ही सदा है, रात दा खाता नी दे यहां सफर, अं हि इाट बर
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