ऋग्वेद | Hrighved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
634
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २३ )
का ऐसा भीषण और रोमांघरारी विश्र खींचा है; कि उसे पदृकर पापी
से भी पापी व्यक्ति का दिल कॉप जाता दै । सर्वोपयोगी गी आदि
पशुओं के घातक का सर्व॑स्थ नाश द्वो जाता है और उसे तीम छोकं
फऋ्रह्ीं भी ठिकने के लिये स्थान नहीं मिलता ।
वेदों में स्थान-स्थान पर इस प्रकार के सैकड़ों रष्ट प्रावेश होगी
हुए और प्राणीमात्र को 'आत्मयत् देखने फा उपदेश ऐोने पर भी यह
कहना कि वेद ने 'यज्” जैसे समाज के 'आधार-स्यरूप परम पपिन्न
इत्य में हिंसा का विधान किया है, वियेक फे पिरुद्ध श्राय है । इंग
विषय में अनेक लोगों को भ्रम द्वोने का यह भी कारण दै कि येद-
भाषा में एक-एक शब्द के अनेक अथ लिये जाते है, अर्थात् 2गर्फ
बहुत व्यापक आशय रखने वाले होते हैं । ऋझाद्रणा्थ भी या
गावः (गो) शब्द का प्रयोग केबल गाय (पशु) के लिए कहीं कियाताजा
है, पर उससे अपन्न घी, दूध, दद्ढी, गोबर, गौमूत्र; बड़ा, बरदिया
आदि सबके लिये प्रयोग में श्रा सकता दै । इसी प्रकार श्रता फा
श्रय बकरा, पुराना श्रम्त और अजन्मा अथाद आत्मा भी मामा
गया है । इसके सिवा विशेष उहेश्यों की पूर्ति के लिये तरह-तरह की
जदी-बूटियों से हवन करने का भी विधान दे और श्रायुवेद के अस्यी
में बहुसंस्यक जड़ी-ब्रूटियों में ऐसे नाम दिये गये है लिनया अर्थ प्रशु
भी होता है । जैसे ऋफष्भकन्द नाम की पति का नाम फेवल पृषभ
( बल ) लिखा दई । अ्रश्वगंवा का इल्लेख अस्त! ( धोड़े ) के नाम से
ही किया गया दे | इसी प्रकार कुचा घाध के लिए व्यात! मद्धिपाद्
या सुग्गुल के जिये 'मद्दिप', वारादीसन्द्र के लिए वाराइ!, मूपराकर्णाी
के लिए 'मूषक! आदि शब्द लिख ढिये गये है । फलों श्रीर अवधियों
गूर के क्षिए 'मांस! शब्द लिखा हैँ 1 माव प्रकाश! में सड स्थान पर
आम के मांस, अस्यि सज्या' का जिक्र दिया गया द । ऐसे झारमों
से भी आचीन अन्यों के श्रनेक वाक््यों के अर्थ करते में दिखा दो दाव
सनी से कह दी जाती दे | इस विवेचत से दम इौ्थी
निष्कर्ष पर पहुँचते 4 हि वेदीं छा मूत्र ददेश दिखा का नहीं दा
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