उदान | Udan

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Udan by भिक्षु जगदीश काश्यप - Bhikshu Jagdish Kashyap

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१.६. ] बोधि वर्ग [७ “वाप-धर्मों को बाहर कर जो सदा स्मृतिमान्‌ रहते हैं। सभी बन्धनों' के कट जाने से जो बुद्ध हो गए हे संसार में वही ब्राह्मण कहे जाते हे” ॥५॥ हद ये के 5 -बआाहायण कौन है ! ऐसा मैंने सुना। एक समय भगवान्‌ राजगृह के वैलुबन कलस्दक निवाप सें विहार कर रहे थे । उस समय आयुप्मान्‌ सहफकाइएप पिप्फलि गृह १ में विहार कर रहे थे; बे वहाँ किसी कड़े रोग से बहुत बीमार पड़े थे। तब, आयुष्मान्‌ महा- कादणप कुछ दिनों के बाद उस दीमारी से उठे | विमारी से उठकर आयुष्मान्‌ महाकाइयप के मन में यह बात आई--अब में राजगुह में भिक्षाटन के लिए जाऊँ। उस समय, आयुप्मात्‌ महाकाशयप को पिण्डपात्र देने के लिए पाँच सौ देवता उत्सुक हो कर आए। आयुष्मान्‌ महाफाइयए उन पाँच सौ देव- ताओं को छोड़कर, सुबह में, पहन, पात्र-चीवर ले राजगृह्‌ के दरिद्व, कृपण, और नीच जाति के जुठाहों की गछी में भिक्षाटन के छिए चले गए। भगवान्‌ ने आयुप्मात्‌ सहाक्राइयप को राजगृह के दरिद्, कृपण, और नीच जाति के जुछाहों की गली में भिक्षाटन बरते देसा! इसे देख, + दक्ष प्रकार के बन्धन (5संपोजन]---देखो 'मिक्तिद प्रशइम' की बोधिनी, परिद्िष्द, पृ० १२ १६ ३ “िललहरियों (कठन्दकों) ब्गे यहाँ अनय (८नियाप) दे दिया घया था, इस्तीलिये इस (विहार) का माम कसन्दक नियाप पड़ा था? (सट्ठकथा) हु ०एजूब-जतत सर भपावातर (शलथ्वत्ताज से सतत छाज है 1




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