चरक - संहिता भाग - 2 | Charak - Sanhita Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
105 MB
कुल पष्ठ :
618
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ २ )
द्विरेता, पवनेन्द्रिय, सस्कारवाही, नर
घण्ढ, ईर्ष्याभिरत वातिकषण्ढ आदि
की उत्पत्ति विषयक प्रदन। उनके उत्तर,
गर्म स्थिति के लक्षण। गर्भ स्थित
कन्या और बाछक के छक्षण । माता
पिता के सदृश सन्तान होने के कारण,
विक्ृत, अधिकाग, हीनाग, विकछाग,
सनन्तति विषयक प्रइन और आत्मा के
शरीरान्तर-प्रवेश ओर उसके बन्ध-
कारण विषयक प्रइन । उनके उत्तर।
सवंरूप आत्मा का विश्वकर्मत्व | लिग
शरीर। शरीरान्तरगासी सूक्ष्म शरीर,
पू्वें कर्मानुरूप शरीर की रचना ।
रोगोत्पत्ति, रोगशान्ति, हु, शोक,
शरीर और सनोविकार के कारण विष-
यक छ प्रइन। इनका समाधान । देव
ओर पोरुष का विवेचन । रोग किसको
नहीं सताते। उपसद्दार |
तृतीयोउध्यायः ( प्रृ० ३९-५३ )
खुड़ीकागभोवक्रान्तिः--गर्भ मे
जीव के आगमन सम्बन्ध मे छ्ुद्ध-शरीर
का उपदेश । गर्भ की उत्पत्ति विषयक
ऋषियों में परस्पर सवाद् । इस विषय
में भगवान् आज्नेय पुनवेसु का सिद्धान्त
प्रतिपादन-पिता आदि से गे की उत्पत्ति-
आत्मा का जन्म सन््तानोक्त्ति में माता
पिता का अश-आत्मज गर्भ-सात्म्यज
गर्भ ओर रसज गर्भ की व्याख्या। सत्तज
गर्भ, स्पुकशरीर का वर्णन 1 त्रिविध
सत्व, जातिस्मर | जीव की उत्पत्ति के
सम्बन्ध में मुनि भरद्दाज के प्रश्न । आन्रेय
पुनर्वसु का समाधान । प्राणियों की चार
प्रकार की योनि-अध्यात्मज्ञान ।
चतुर्थोउध्यायः ( ० ४३-६७ )
महती-गर्भावक्रान्तिः--गर्भ की
सज्ञा, विकार, परिणाम, गे रचना का
अनुक्रम, वृद्धि के कारण, जन्म, विनाश,
विकृृति आदि का वर्णन । पाँच महाभूत
और छठे धातु आत्मा का वर्णन। गर्भा-
शय में गर्भ विकास का क्रम | सन -
साधन वाले चेतना धातु के २९ पर्याय
नामों का निरूपण | पॉँचों धातुओं का
ऋमिक ग्रादुर्भाव। गर्भ का प्रथम रूप
खेट । द्वितीय रूप, 'घनः । घन, पेशी
अबुद आदि से पुमान् , खी, नपु सक
आदि की उत्पत्ति । छोक-समित पुरुष
का निदर्शन, पुरुष की प्रकृति और
विकृति । गर्भस्थ जीव की चेष्टा भोर
मनोविकार । दो हृदयो के लक्षण ।
गर्भ के ९ भासों में गमिणी के शरीर
की दशा आदि का वर्णन। गर्भ-वृद्धि
के कारण । गर्भ विक्रृति के कारण ख्री-
व्यापत् । पुरुष व्यापत् । सर्व (सन)
के शुद्ध, राजस, तामस भेद से तीन
प्रकार | शुद्ध सात्विक चिर्ततों के सात
भेद-बाह्म, आधषे, ऐन्द्र, याम्य, वारुण,
कोबेर, गान्धव । राजस सच्त के ६ भेद्-
आयुर, राक्षस, पेशाच, सापे, प्रेत,
शाकुन । तामस सत्त के ३ भेदू-पाशव,
मात्स,, वानस्पत्य । उपसहार ।
पद्चमोउध्यायः ( प्ू० ६६-७८ )
पुरुषविचय/--छोक सम्मित पुरुष
का विस्तृत वणन । पुरुष का लक्षण |
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