चरक - संहिता भाग - 2 | Charak - Sanhita Bhag - 2

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Charak - Sanhita Bhag - 2  by कविराज अत्रिदेव जी गुप्त - Kaviraj Atridev JI Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ २ ) द्विरेता, पवनेन्द्रिय, सस्कारवाही, नर घण्ढ, ईर्ष्याभिरत वातिकषण्ढ आदि की उत्पत्ति विषयक प्रदन। उनके उत्तर, गर्म स्थिति के लक्षण। गर्भ स्थित कन्या और बाछक के छक्षण । माता पिता के सदृश सन्तान होने के कारण, विक्ृत, अधिकाग, हीनाग, विकछाग, सनन्‍तति विषयक प्रइन और आत्मा के शरीरान्तर-प्रवेश ओर उसके बन्ध- कारण विषयक प्रइन । उनके उत्तर। सवंरूप आत्मा का विश्वकर्मत्व | लिग शरीर। शरीरान्तरगासी सूक्ष्म शरीर, पू्वें कर्मानुरूप शरीर की रचना । रोगोत्पत्ति, रोगशान्ति, हु, शोक, शरीर और सनोविकार के कारण विष- यक छ प्रइन। इनका समाधान । देव ओर पोरुष का विवेचन । रोग किसको नहीं सताते। उपसद्दार | तृतीयोउध्यायः ( प्रृ० ३९-५३ ) खुड़ीकागभोवक्रान्तिः--गर्भ मे जीव के आगमन सम्बन्ध मे छ्ुद्ध-शरीर का उपदेश । गर्भ की उत्पत्ति विषयक ऋषियों में परस्पर सवाद्‌ । इस विषय में भगवान्‌ आज्नेय पुनवेसु का सिद्धान्त प्रतिपादन-पिता आदि से गे की उत्पत्ति- आत्मा का जन्म सन्‍्तानोक्‍त्ति में माता पिता का अश-आत्मज गर्भ-सात्म्यज गर्भ ओर रसज गर्भ की व्याख्या। सत्तज गर्भ, स्पुकशरीर का वर्णन 1 त्रिविध सत्व, जातिस्मर | जीव की उत्पत्ति के सम्बन्ध में मुनि भरद्दाज के प्रश्न । आन्रेय पुनर्वसु का समाधान । प्राणियों की चार प्रकार की योनि-अध्यात्मज्ञान । चतुर्थोउध्यायः ( ० ४३-६७ ) महती-गर्भावक्रान्तिः--गर्भ की सज्ञा, विकार, परिणाम, गे रचना का अनुक्रम, वृद्धि के कारण, जन्म, विनाश, विकृृति आदि का वर्णन । पाँच महाभूत और छठे धातु आत्मा का वर्णन। गर्भा- शय में गर्भ विकास का क्रम | सन - साधन वाले चेतना धातु के २९ पर्याय नामों का निरूपण | पॉँचों धातुओं का ऋमिक ग्रादुर्भाव। गर्भ का प्रथम रूप खेट । द्वितीय रूप, 'घनः । घन, पेशी अबुद आदि से पुमान्‌ , खी, नपु सक आदि की उत्पत्ति । छोक-समित पुरुष का निदर्शन, पुरुष की प्रकृति और विकृति । गर्भस्थ जीव की चेष्टा भोर मनोविकार । दो हृदयो के लक्षण । गर्भ के ९ भासों में गमिणी के शरीर की दशा आदि का वर्णन। गर्भ-वृद्धि के कारण । गर्भ विक्रृति के कारण ख्री- व्यापत्‌ । पुरुष व्यापत्‌ । सर्व (सन) के शुद्ध, राजस, तामस भेद से तीन प्रकार | शुद्ध सात्विक चिर्ततों के सात भेद-बाह्म, आधषे, ऐन्द्र, याम्य, वारुण, कोबेर, गान्धव । राजस सच्त के ६ भेद्‌- आयुर, राक्षस, पेशाच, सापे, प्रेत, शाकुन । तामस सत्त के ३ भेदू-पाशव, मात्स,, वानस्पत्य । उपसहार । पद्चमोउध्यायः ( प्ू० ६६-७८ ) पुरुषविचय/--छोक सम्मित पुरुष का विस्तृत वणन । पुरुष का लक्षण |




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