प्राण गीत | Pran Geet

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Pran Geet by नीरज - Niraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आष-दीस दर मुझे भि्ती है प्यास विपमता का विप पीने के सिए, मैं जन्मा है महीं स्वय-हित जग-द्वित जोने के लिए मुझे: दी गई भाग कि इस तम मे मैं ग्राय सगा सब गीत मिले इसप्तिए कि घायल जग की पीडा था सम मरे इरदील्रे मीसो को मत पहनामों हथगड़ी मेरा देई महीं सेरा है सबका हाहाकार है। कोई महीं पराया मेरा पर सारा ससार है॥ मैं सिलभाता है कि जियो भो जीने दो ससार को जितना दयादा यॉँट सको धुम वॉटो प्रपने प्यार को हैंसो इस तरह हेंसे तुम्हारे साथ दर्सित यह घूस भी असो एस सरह रुछस म जागे पय से कोई धूल भी सु न तुम्दारा सुख केवल जग बा भी उसमें भाग है फूस्त डाश्ष का पीछ पहसे उपबन गा ध्यगार है। कोई सहीं पराणा मरा घर सारा संसार है॥




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