गीत भी अगीत भी | Geet Bhi Ageet Bhi

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Geet Bhi Ageet Bhi by नीरज - Niraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अब सहा जाता नहीं अब तुम्हारे बिन नहीं लगता कही भी मन-- बताओ क्‍या करूं ? नीद तक से हो गई है भाजकल शभ्रनवन-.- बताझो क्या करें ? इप भाती है ने भाती छाँव है, गेह तक लगता पराया गाँव है, और इसपर रात श्राती है. बहुत बमठन-... बताओ क्या करूँ ? चेन है दिन मे न कल है रात भे, क्योकि चिड-चिडकर ज़रा सी बात मे, हर खुशी करने लगी है दिन ब दिन अनशन--- बताभ्रो क्‍या करूँ ? पर्व हो या तीज या त्यौहार हो, हो शरद, हेमन्त या पतभार हो, ' ग्ौत भी, भगीत भी २३




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