महात्मा गांधी | Mahatma Ghandi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बचपन है थ निरन्तर विकसित होता गया जौर अन्तत परिवार तथा समुदाय के सकुचित दायरों को तोडकर सम्पूर्ण मानवता मे व्याप्त हो गया । गाधीजी ने अपनी माता से सेवा का वह उत्साह ही नहीं पाया जिसकी प्रेरणा से वह अपने आश्रम मे कोटियों के घाव घोया करते थे वत्कि जारम-पीडा द्वारा दूसरों के हृदय को प्रेरित जौर द्रवित करने की कला भी सी खी जिसका कि पर्निया जौर माताए अनन्त काल से प्रयोग करती आ रही हूं । मोहन के पिता करमचन्द गावी ने स्कूलो दिक्षा ज़रा भी नहीं पाई थी । लेकिन दुनियादारी का उनका ज्ञान वहुत बढा-चढा था। आदमियों की उनकी परख भी वहुत अच्छी थी । अपने पुत्र के बव्दों में वह अपने भाई- चन्वुनों को वार करनेवाले सन्यवादी वीर और उदार थे । बन जोड़ने में उनकी जरा भी रुखि नहीं थी यहातक कि अपने पीछे बच्चों के लिए कोई जायदाद भी नहीं छोड गये । उनके घर से रामायण और महाभारत जैने पुराण ग्रथो का पारायण होता था । जैन मुनियो तथा पारसी ओर मुस्लिम सतो से धर्म के तत्त्व पर प्राय चर्चाए भी होती थी । लेकिन करमचन्द का वर्म अधिकतर जौपचारिकता तक ही सीमित था । स्वयं उनके बेटे का अपनी वासठ वर्प की उम्र में कहना है जो भी घार्मिकता लाप मुभमें देखते हे वह मैंने अपनी मा से पाई है पिताजी से नहीं । करमचद जौर उनके सबसे छोटे वेटे की उम्र मे आवी सदी का अन्तर था । उम्र के इस फर्क ने पुत्र के लिए पिता को स्नेहश्ील साथी की जगह सोलहों आने पूजनीय बना दिया था और जब इस पितु नक्‍्त वालक ने श्रवण की पितृभक्ति पर एक पुराना नाटक पढ़ा तो अन्वे माता-पिता को फावर में बिठाकर तीथें-यात्रा के लिए ले जाते हुए श्रवण का चित्र कोमल- मति मोहन के मस्तिप्क पर जमिट रूप से अकित ही नहीं हुआ श्रवण उनना जादगें मी बन गया । साता-पिता की आज्ञा का पालन उसका मूल-मन्त्र हो गया । जंसे-जेंसे समय वीतता गया साता-पिंता के साथ- नाथ पहले शिक्षकों और तब सभी वडे लोगो की आजा का तत्परता से पालन करना उसका अटल नियम वन गया । लेकिन वाल-सुलभ आच- १ प्लददिवमाट को डायरी अपनी सस्करण सद १ 3२ मात १९डर का उद्लय




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