सोहन काव्य - कथा मंजरी भाग - 6 | Sohan Kavya Katha Manjari Bhag - 6

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Sohan Kavya Katha Manjari Bhag - 6  by आचार्यप्रवर सोहनलाल - Acharyapravar Sohanalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐसा कौन है बली जगत में श्राप नाम फरमाय-नाथ जी- मेरी नजर में कभी न आ्राया देखने को चित्त चाय ॥ काल०॥ ११॥ काल स्वामी का दूत श्वेतकच', दे रहा यों आवाज-राणी जी- चेत चेत ओ चेत चतुर नर सूधर जायगा काज ॥| काल०॥ ११॥ स्वामी श्राये बाद तुम्हारा, नहीं तन पर अधिकार-राणी जी- धरा, धाम, धन सभी छीन ले नंगा काढ़े बार ॥। काल०॥ १२॥ श्रत: दात कर ईश भजन की, पूंजी ले लो लार-राणी जी- जहां जावेंगे यही सम्पति सुख देगी हर बार ॥ काल०॥। १३॥ सुतकर समझ गई महाराणी, काल शरत्र्‌ बलवान-सज्जनों- सत्य. नाथ फरमान आपका सदा भजें भगवान ।॥ काल०॥ १४॥ धप्राज्ञ' प्रसादे 'सोहन' मुनि कहे, सदा रहो हुशियार-सज्जनों- आलस तज कर कम काट. लो काल जायगा हार॥ काल०॥ १५॥। दो हजार इकतीस जेठ बुद, दशमी है गुरुवार-सज्जनों- अजमेर शहर में जोड़ बनाकर कर लीनी तैयार ॥ काल०॥ १६ ॥। [गुर १. सफेद केश श्र




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