ब्रह्मवैवर्त पुराण भाग - 2 | Brahma Vaivart Puran Bhag - 2

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Book Image : ब्रह्मवैवर्त पुराण भाग - 2  - Brahma Vaivart Puran Bhag - 2

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नारीणां रक्षकनिरूपणम्‌॒] [२३ महा पीड़ित हूँ 11२५॥ जीवों के घात करने बाले-गुरु से द्रोह करते वाले-लुव्धक-शव का दाह कराने वाले--शुद्र के यहां भोजन करने वाले जो लोग हैं उसके इन युक्त कुक्ृत्यों के कारण मैं उनके भार से पीड़ित हो रही हूं ॥1२६॥ पृजा, यज्ञ, उपवास, व्रत, नियम इनके जो हनन करने वाले हैं उनके भार से भी मैं सताई हुई हो रही हूँ ॥२७॥। जो पापी सदा ही गौ, विप्र, सुर, श्रौर वेष्णवों से 6 थे किया करते हैं और हरि की कथा तथा हरि की भक्ति से द ष रखते हैं उनके भार से भी मैं पीड़ित रहती हूँ ॥२८॥। है विधे ! जैसी मैं शंखचूड़ के भार से पीड़ित हूँ वसे ही उससे भी अत्यधिक देत्यों के भार से मैं पीड़ित हो रही हूं 11२६॥। हे प्रभो ! यही मुझ अनाथा का सब निवेदन है जो पैंने आपसे कह दिया है । यदि आप मुझ अपने द्वारा सनाथा बनाना ' चाहते हैं तो इस मेरे उत्पीड़न का प्रतीकार करिये तभी मैं नाथ वाली हो सकू गी ॥।३०।। इत्येवमुक्त्वा वसुधा रुरोद च मुहुमु हुः । ब्रह्मा तद्रोदनं इृष्टा तामुवाच कृपानिधि:। भार तवापनेष्यामि दस्यूनामप्युपायत: ।॥।३१ उपायतो४पि कार्य्यारिण सिद्धन्त्येव वसुन्धरे । कालेन भारहरणं करिष्यति मदीश्वरः ॥३२ ब्रह्मा पृथ्वीं समाश्वास्य देवताभिस्तया सह । जगाम जगतां धाता केलासं शडद्धूरालयम्‌ 11 ३३ गत्वा तमाश्रसं रम्यं ददर्श शद्भूरं विधि: । वसनन्‍्तमक्षयवटमुले च सरितस्तटे ॥३४ व्याप्रचम्मंपरीधानं दक्षकन्यास्थिभुषणम्‌ । त्रिशुलपद्दिशधरं पश्चवक्त्र जिलोचनस्‌ ॥३५ एतस्मिन्नन्तरे ब्रह्मा तस्थावग्रे स धूजंटे: । पृथिव्या सुरसंघेश्व साद्ध प्रणतकन्धर: ॥३६ उत्तस्थो शद्धूरः शीघ्र भवत्या दृष्ठा जगदुगुरुम । ननाम मर्ध्ना सम्प्रीत्या लब्धवानाशिषं ततः ॥३७




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