हिन्दी - शेक्सपियर भाग - 4 | Hindi - Sheksapiyar Bhag - 4

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Hindi - Sheksapiyar Bhag - 4  by गंगाप्रसाद - Gangaprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हैस्लिट । हू शाप के म॒प से वे हवंसचक चिह्द नहीं पाये जाते। इसलिए म॒स्हे आप पर विश्वास नही है । परन्तु इससे आप को मेरी प्रीति में सन्देह नटीं करता चाहिए। पर्योकि स्रियों को धेम ओर सन्देह यरायर होते है सितना उन- का ध्रेम होता हे उतना ही थे शह्ठा फ्रिया करती हें जब भेम अधिक होता हे तब थीटी सी बात पर शद्वा हो ज्ञाती हे । नाठकी राजा--अवब में थोड़े दिनो में तुमछो छोटने याला हैं । प्यारी, मेरी शारीरिक शक्ति श्रय दिन प्रति दिया घटती जाती है श्रीर मेरा झ्न्त निकट थ्रा पहुंचा है | तुम हमारे पोछ़े प्रेम और मोश्व के खाथ रहना (शायद ठुमफो मुझ से भी अधिक प्रिय पति की प्राप्ति हो जाय। नादक्नी रानी--ऐसा मत फट्दो, ऐसा मत फदी । नद्दी तो यह पेम नदी किन्तु पाप दे | दूलय पति बसा डचित नदीं। वही दूसरा पति करती ह जिन्होंने अपने पहले पति को मार डाला हे । इसऊी सुन कर हैल्चिट की माता और उसके पति ठोनों के मुख पर उदासा छा गई। नाटजी रानी-जो खियोँ दूसरा निबाह करती है दे थेम के कारण नहीं करती | यदि मेरा दूसरा पि से तो सम- अना चाहिप्ट कि मेंदे अपने पहले पति को मार डाला। साटकी राजा--में समझा हैं कि तुम अपने वत्तमान विचारों के अजुकूस कर रही हो। परन्तु बहुघा इन विचारों के विरूओं दी जाता है. 7 शी इच्छा हमारी स्थति के कि,




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