हिंदी सन्त काव्य में मधुर भावना | Hindi Sant Kavya Me Madhur Bhavna

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Hindi Sant Kavya Me Madhur Bhavna by डॉ. प्रवेश विरमानी - Dr. Pravesh Virmani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्तर मध्ययुगीन परिस्थितियाँ ] [७ र्पष्टत। समन्वय की बलवती लहर दोनों धर्मों की सामासिक संस्कृति के स्थापन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी । आध्िक परिस्थिति मानव प्रकृति से ही. अर्थप्रिय और धन में लिप्त रहने वाला प्राणी है । मध्य युग का उत्तरार्ध दरबारी सभ्यता सामनती सभ्यता से अभिशप्त था । उस युग में धन के आधार पर मानव ने मानव का भली-भाँति शोषण किया । शासन द्वारा नित्य नये-नये करों की व्यवस्था की जाती थी । कबीर के समकालीन शासक सिकन्दर लोदी ने हिन्दुओं पर अनेक कर लगाये थे । सिकन्दर लोदी से लेकर बहादुरशाह तक दरबारी शान-शौकत प्रदर्शन और प्रसादों के निर्माण में जो शाही व्यय हुआ उसका स्रोत किसान मजदूर तथा जन-सामान्य था । निस्न मजदूर वर्ग का जीवन सदैव संकटमय बना रहता था । युद्धों करों अकालों अतिवृष्टि अनावृष्टि के कारण जनता का सामान्य वर्ग सदैव संकदमय जोवनयापन करता था। मानव की मर्यप्रियता उत्तरोत्तर बढ़ती गई । धन की चुष्णा हेतु मानव अपने सहज गुणों को भुलता गया और विषमताओं को अपनाता गया । कबीर के युग में समाज गसमान वितरण तथा गाथिक विषमता से अभिशप्त था.। है मलूक- दास के युग में विषम आर्थिक परिस्थितियों के कारण जहाँ जनता का एक. वर्ग निर्धन था तो दूसरा वर्ग अपार धन वैभव और सुख का आगार । किन्तु गरीब मिर्धनता के अभिशाप से पीड़ित था और अमीर के पारस्परिक कलह का आधार श्न था । ऐश्वर्य और वैभव की तृष्णा के लिए पुत्र पिता की हत्या करता भाई सहोदर का वध करता था । अतः घन अविश्वास अनास्था अनाचार असंगत्ि का आधार बन गया । लगान वसूल करने वाले छोटे-छोटे कर्मचारी भी लुटेरों की भाँति इन दीनों को नॉंचते-खसोटते थे । कितने ही अन्यायपूर्ण कर लगाये जातें थे । जिन्हें देते-देते वे परेशान हो जाते थे । ४ न घार्मिक परिस्थिति १६वीं सदी में . व्यापक धर्म-सुधार आन्दोलन के प्रभाव से राजपुतों का हृदय परिवर्तन करने तथा अफगानों का घामिक विद्वेष शान्त करने के लिए अकबर १३. कुभरा एक कमाई मादी बहु विधि जुगत बणाई । एकनि मैं सुकताहल मोती एकनि व्याधि लगाई ॥। एकनि दीना पाद पटंबर एकनि सेज निवारा । एकनि दीनी गरे यगूदर एकनि सेज पयारा ॥ -- कबीर ग्रन्थावली--डॉ० पारसनाथ तिवारी पद ६४ पृ० दे७ १४. डॉ ओमप्रकाश शर्मा-- सन्त साहित्य की लौकिक पृष्ठभूमि पु० ७४




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