यज्ञ में पशु वध वेद विरुद्ध | Yagya Men Pashu Vadh Ved Viruddh

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Yagya Men Pashu Vadh Ved Viruddh by श्री नरदेव शास्त्री - Shri Nardev Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २४ ) हे विद्वान पुरुष ! जिस मनुष्य से (वाज्िना अश्वन) वेगवान्‌ घोड़े के साथ (एब: विश्वदेव्य:) यह सब दिव्यगुणों में श्रेष्ठ (पृष्ण: भाग: छाग:) पुष्टि का भाग बकरी का दूध (पुर: नीयते) पहले पहुँचाया जता है, ( यत्‌) और जो (त्वष्टा) सुन्दर रूप साधक मनुष्य (सोश्रवसाय) उत्तम अन्नों में पसिद्ध अन्न के लिए (अबता) विज्ञानपूर्वक (एनं अभिवियं सब पुकार से पिय इस (पुरोडाशं इत्‌ ) सुसंस्क्ृत अन्नको ही (जिन्बति) पांप्त करता है, वह सुखी होता है । एवं, उपयु क्त मंत्र कौ भाव स्वामी जी के शब्दों में ही यह है कि 'जो मनुष्य घोड़ों की पुष्टि के लिए छेरी को दूध उनको पिलाते ओर अच्छे बनाए हुए अन्न को खात हैं, वे निरन्तर सुखी होते हैं। 'छाग' से बकरी का दूध केसे लिया जाता है, इसका उत्तर हि में पुर्वोक्त छाग कषायमधुरं' आदि चरक- वचन हे | ११--ऐसा पृतीत देता दे कि पाचीन काल में छाग आदि पशु वनों में पोले जाते थे और तब पशुवध की पृथा पूचलित न थी । जैसे कि चरक १, ११८ में लिखा हे-- ओपषधीनामरूपाभ्यां, जानन्ते ह्मजपा वने | अविपाश्न व गोपाश्च, ये चान्य वनवासिन: ॥ यहां अजपां:, अविपा:, गापा: आदि सब शब्द पशुरक्षा में ए २ प्रयुक्त हैं, जिनका अथ अजपालक, अविपालक ओर गेपालक हैं। १२--ऋग्वेद के उसी सूक्त को (१, १६२, २१) दूसरा मंत्र ओर है--




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