प्राचीन भारत में स्वराज | Prachin Bharat Me Swaraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन ग्रुसनीय साहित्प परिषद्‌ ने अपने टटेंइपानुसार साहित्प को विशेष तोर पर से करते के जिये एक सन्य- साला निकालने का निएफघय फिया था ग्रन्थ माला की प्रधम पुस्तक“सनन्‍स ध्रोबनी” हिन्दी मार्थ्ल्प-भंखार के सन्मुम्य सपस्यित की काऋचकी श्ै | आफ उग चउपको दूसरो तलोॉसर।!. सुरूया प्रायोन ्राएत में सवरायप!! नाम को लेकर उपस्थित हुवे हैं | पुस्तक की उपयोगिता पुरुनक के नास से रूवब्ट' है। निस्‍्तन्देद यह पुस्तक अपने विषय की छ्विन्दो साहित्य में प्रथम पुस्तक है। भारत के ध्राध्ोन गौरण को दिखाने को जिलनी आवश्यकता हे वह प्रत्येक भारत द्विचिन्लकऊ अंली प्रकार खममतर है । हमें निश्चय है कि भ्री पं०चर्मद्त जी अवर्य हो सारत का ध्रायोन गौरव दिसापने सेंसफ तन यत्न हुमे हैँ । आपने प्राचोन भ्रारव की शासन प्रयाली का यथा सम्भव पर्षाप्स द्ग्दशन कराया है। आपने दिखाया है कि प्रायोल भारत में राजसत्ता प्रशासत्ा हे भाधीन थी प्रतिनिचिसत्ताश एवं प्ररिमित-राजससाक शासन पएहुति थी | लेखक सहोदय को उक्त ग्रन्थ लेखन के लिये घन्यवाद देखे हुये पुस्तक-प्रकाशन में बिलम्य फे लिए क्षमा क्रो चइहले हैं | यह गन्य लगसपदोदप पूर्व का लिखा छुअ0्है । लनिध्वय हो लेखक सहोद्य का सामधिक निर्देश समपाझुख र रू रहा होगा ठसका पाठक सह दूप अवध प दे घन रक्‍खे ।




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