सौंदरनंद महाकाव्य | Saundaranand Mahakavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपक्रम ११
सर्वोषधीनामिव भूभ॑वाय
सबापदां क्षेत्रमिदं हि. जन्म |”
अर्थात् हे मनुष्यो, इसलिये संक्षेप में इस जन्म को
ही जरा आदि व्यसनों की जड़ और दुःख का स्थान
सममको । जिस प्रकार सब ओषधियों का उत्पत्ति-स्थान
प्रथ्वी है, उसी प्रकार सारी विपत्तियों का उद्धव-स्थान'
जन्म है।
“आकाशयोनि: पवनो यथाहि
यथा शमीगमेशयो. हुताशः ;
आपो यथान्तव सुधाशयाश्च
दुःखं॑ तथा चित्तशरीरयोनि ।”
अथात् आकाश जिस प्रकार पवन का उत्पत्ति-स्थान है, अग्नि
जिस प्रकार शमी के गर्भ में अवस्थित है, जल जिस प्रकार
प्रथ्वी के भीतर विद्यमान है, उसी प्रकार चित्त ओर शरीर ही'
इस दुःख का मूल है ।
कवि ने हास्य, झआंगार, करुण ओर रौद्र-रस का वर्णन भी:
अपने ओजस्वी शब्दों में किया है, जिसके अवलेकन-मात्र से
चित्त में रसानुसार विकार पेदा हे जाता है ।
करुण-रस के वर्णन में कवि ने “अपिग्नावा रोदित्यपि'
दुलति वज्स्थ हृदयम” इस भमवभूति की सूक्कि का सार्थक
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