भारतीय दर्शन - शास्त्र न्याय - वैशेषिक | Bharatiy - Darshan Shastra Nyay - Vaisheshik

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Bharatiy - Darshan Shastra Nyay - Vaisheshik  by धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री - Dharmendranath shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) कड़ा, अगूटी आदि नाना रूपों में रहने बाला एक स्थिर तत्त्व सुबर्ण है, जा कि नाना धर्म कुण्डल, कड़ा, अंगूठी आदि में रहने वाले स्थिर आत्मा के समान है। और वेदान्त के अनुसार इस विश्वरूपी ग्रपन्न के सारे पदार्थ निथ्या-हूप से एक अद्वैत तत्त्व नह्यम' में प्रकट होते है, जोकि “कमात्र सम्पूर्ण देश ओर सम्पूर्ण काल में रहने वाला नित्य और स्थिर पदार्थ है। वह ब्रह्म ही सारे विश्व की आत्मा है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चोद्ध का अनात्मवाद केवल ज्ञानों की धारा में अथवा दूसरे शञ्रो मे प्रत्येक प्राणी मे रहने वाली स्थिर आत्मा का ही निषेध नहीं है प्रत्युत वह नन्‍्याय-बेशेषिक से माने गये अवयवों मे रहने वाले अबयबी या द्रव्य का भी निर्षेध है और सांख्य में माने गये सारे विकारों में रहने वाले स्थिर तत्त्व का भी, और वेदान्त में माने गए एक अद्वैत तत्त्व का भी निषेध है। अतरव जहां वैदिक दशैनों का मूल तत्त्व आत्मवाद' है, वहां वौद्ध दशेन का मूल मन्त्र अनात्मवाद” है। यही अनात्मबाद का सिद्धान्त, जैसा कि ऊपर कहा गया है, वोदूध दशेन ओर वैदिक दशेनो के बीच मे एक विभाजक रेखा है । ६ बोदो के दाशनिक सम्प्रदायो का विभाग वैदिक दशेन को मानने वाले ग्रन्थकारों के द्वारा भारतीय दर्शन के विभाजन में जहां एक ओर वेदान्त, सांख्य, न्याय आदि अनेक बैदिक दर्शन गिनाए गए हैं वहां दूसरी ओर बोदथ दशन” को केवल एक दरशैन मानकर बोदधों के भिन्न भिन्न सम्प्रदाय उसी के अन्तर्गत दिखा दिये जाते है। यह शैली स्बथा भ्रमपूण्य है, क्योकि वास्तविक बात यह है कि बोदूथों के विभिन्न दाशैनिक सम्प्रदाय एक दूसरे से उतने ही प्रथक्‌ हैं, जितने कि वेदान्त, सांख्य, न्याय आदि बैदिक सम्प्रदाय । सारे बौद्ध सम्प्रदायो को एक जगह दिखाने का स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि




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