मंजिल | Manzil

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मंजिल - Manzil

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भैरव प्रसाद गुप्त - bhairav prasad gupt

Add Infomation Aboutbhairav prasad gupt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मास्टरजी ) हो गये--एकरस शीला 1 कहते हुए योगेश की भीगी झ्राँखे शीला की श्रोर उठ गद । शीला की आँखों मे पिता की स्नेह-स्दतियाँ तरल हो भल- मसला उठी । न योगेश कुछ असयत स्वर म॒धीरे से बोला--शीला वद्द श्रपनी भाव- नायें अपने हृदय मे ही दबाये चले गये । उनकी बातें अरब याद ही बन कर रह. गईं हैं । उनको छेड़ने से हृदय के जख्मों म काँटे चुमेंगे हाँ तो सुनो मैं कह रहा था योगेश सयत हो अपनी पहली बातो से सिलसिला जोडते हुये बोला-- हमारा परिचय हुग्रा । तुम्हे देख कर मैं वंसे ही खुशी से भ्रूम उठा जैस कोई कवि अपने छृदय में कोई सुन्दर कल्पना उठने पर । किन्दु तुम्हारा स्यटर-गार्जियन बनते समय मै किक आर उलभनो से परेशान हो उठा ठीक उसी तरह जैसे कोई कलाकार ्रपनें हृदय के उमड़ते भावों को अकित करने के लिये कलम उठाते समय होता हे । तुम देखती हो कि वह सिकक तर उलभन की परेशानियाँ अब भी बदस्तूर कायम हैं. श्रौर कायम रहेगी जब तक कि मेरी कला पूण विकसित हो तुम्हारे प्राणों को सौन्दयं-सौरभ से भर तुम्हें ससार मे खडा न कर दे | राज चार वर्षों से मैं यहीं उद्द श्य लिये मजिल पर मजिल तै करता हुआ चला रा रहा हू । ज्यों-ज्यों आखिरी मजिल समीप अ्राती जा रही है त्या-त्या मेरे हृदय की ख़ुशी बढती जा रही है । किन्ठ श्राज ठम्हारी आआाँखा के ये श्रॉस ठम्हारे हृदय के उच्छासों का यह तूफान मेरी साधना को केँपा रहा है शीला क्या मेरी साधना आ्रपूण ही रहेगी ? पनहीं-नदी मास्टरजी ऐसा न कहिये--ऐसा न कहिये यह मेरा सोभाग्य है जो आपके प्राणों की साधना की पात्री बनने का सुक्के गौरव पाप हुआ । मै इस गौरव के योग्य बनुँगी ।--दृढता के स्वर मे शीला बोली । शीला साधक की साधना उसका प्राण होती है--उसका सर्वस्व॒ होती है। जब भी उसकी साधना को कोई ठेस पहुंचती है तो वह तिलमिला [ ७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now