गंगा मैया | Ganga Maiya

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Ganga Maiya  by भैरव प्रसाद गुप्त - bhairav prasad gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेढे थे वंची ही बहुएं मिलने जा रही थो । मो तो वर्षों से बहुभो का मुंह: देखने को तड्प रही थो। इस रिइते को चर्चा जिसने भो सुनी उस्चीने वाप को राय दी कि “बस झ्रव कुछ सोचने-सम ने की दात नहीं । यह भगवान्‌ की किरिपा है कि ऐसी बहुएं मिल रहो हैं। एक ही साथ उसे दोनों बेटों के सभी संस्कार हुए, बेस हो एक ही शाप ब्याह भी जितनी जल्द हो जाए, अच्छा है 1/ सूब घूम-पधाम से ब्याह हो गया। दो-दो सुद्यीत, सुन्दर बहुएँ घर में एक साथ व्यां उत्तरी, घर खम-खम भर गया। मॉँ-चाप की सुभी का ठिकाना न रहा | शव उन्होंने देखा कि सचमुच बहुएँ उससे कहीं वड़- बढ़ कर हैं, जुँसा कि उन्होंने सुना था तो उनके सन्तोष-धुस के वया कहने ! गोपी प्यारी पत्तों के साथ ही प्यारी भाभी पाकर निहाल हो गया। उसके लिए घर का प्सार इतना मोहुक, इतना सुसकर हो 5ठा कि बह बेस घर में ही रमकर रह गया। बाहरी ससार से उप्तने एक तरह से नाता ही तोड़ लिया | वह एक धुन का ब्रादमी था । पहले उच्ते सासारिक बातों से, श्रपना दारीर बनाने और कसरत की घुन में, कोई दिलचस्पी ही नथी। झव एक छूटा, ठो दूसरे से वहु इस तरह विपठ नया कि लोग देखते झौर ताउशथुब करते । लोकाचार के बनन्‍्धनों के कारण उसे अपनी बीवी से मिलने-जुलने को उत्तनी आज़ादी ने थी, जितनों भाभी से। भाभी से वह सुतकर मिलता और हँसो-मशाऊक के ठद्वाकों से धर को गुँजा देता । माँवाप का दिल घर के इस सदा हंसते वातावरण को देसकर खुशी से झूम उठता। मानक को इने बातों में खुलकर हिस्सा लेने की प्ाझादी न थी, फिर भी बह मोती और भाभी का स्नेहमय व्यवहार देखकर मन-ही-मन हर्ष-विमोर हो उठता । भाई-भाई का प्रेम, बहत-बढून का प्रेम, देवर-भाभी का प्रेम, पुत्र, माता-विता वघुश्रो का प्रेम ! ऐसा लगता या, जैसे चौथीस धण्टे उस घर में श्रमृत को वर्षा होती ऐ--छक-छक्फर, नदह्य-नहाकर घर का प्रत्येक प्राणी आत॑न्‍्द- >> ५. 5




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