विश्व काव्य की रूपरेखा | Vishv Kavya Ki Roop Rekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सब इुंगा जा रहा है
बिल््गो मे घसना मैडान मे घलना नहीं है ।*
एजाबीपन बी सर्वेब्यापा अनुभूति विश्वनविता मं इस छोर से सेकर
उतर छार तक समाहित है। एकाहाप्न क1 बांध मविसको के कवि सुई
क्रतूदा को बयिता चहुत पहल का बहत मे जांवन के भाकषषक भरसाद्य
भार के साथ स्पष्ट हुपा है ।--
निदन के किसो कीने मे
अक्ले प्रपंवा सिर भ्पन हाथो मे लिए
प्रत्ि'हुस९ प्रत्त को तरह
तुप्र यह सोाष-सोच कर रात रदहोग कि
जिरगी बिसनो सूदसू रत थो भौर बितना स्यथ 1
अप्रीरी कवि इुन्ध्रिड जोकर को कविता ये नहों चाहता एसों सह्मे
की उपलब्धि है ।
उपयु क् एकाकीपन का बोध मृत्युवोध याविकृता, परिवेश ग्रत जीवन पीटा
सथा प्रन्तविराधा के (रस युग में कवि व्यंग्य-मृष्टि करने के लिए वाध्य है।
प्रतथश कथि जीवन की कशव।हुट को व्यग्य को तल्खा मे भूल जाना बाहता है।
वह समाज पर स्यग्य करता है रूढ़ियों मोर परम्पशप्मों पर ब्यंग्य करता है
कभी-कमी स्वये पर भो व्यंग्य करते खगता है। गत यूगोन सान्यताभा रु पति
उसके भ्रन्त करणा में विद्वाह है इन मायतामों को रक्षक भौर प्राज़ मे कवियो
की उपसंब्धि को नकारने वाली मुग बोध से पिछड़ी पीढ़ी सय कवि के भागे से
थाघक बनत्तो है। एही स्थिति में वह मदि इन परम्परावादिमा भौर मए
प्रायाम! व) मु है वना+र देखने वासों के प्रति ब्यंग्य निवेदन! म कर तो उठ्की
स्वय को स्थिति व्यंग्य का विद्व,.प घबनरूर रह जाय। समाज से बढ़ते हुए
अष्टाचार भाषिक विषमता मौर उम्के कष्टा का हनुमद करता हुमा मसाया
माय रवि ईडियांय दाग एढ़ व्यंस्य सृष्टि करता है--
इससिए मे सोचता हूं कि रिटायर हान पर
मैं राजनीति में हिस्सा सू या
या कोई स्थापार कर छू गा, क््थाकि सररुाटी नौरर
ढ्मी जल्दो भमोर नहो हो सकता ।/
सम्प्रत्ति युग का रघताकार विवत्ामों क॑ कारए प्रसतोप का भनुमय
कर रहा है इस मुग को मंदि मम ओर भ्रसंतोष को युग कहा जाबतो एक
बड़ी श्रीमा तक सहो होगा। बट कदि प्राल ब्लैेकबन ने भसठाप की
अमिर्व्पक्ति दी है ।
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