उत्तराध्ययन सूत्र | Uttaradhyayan Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
461
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तवोसभायारि समाहिसंचुड़े,महज्ज़ुई पंच बयाई पालिया।१७
: ऐसा शास्त्रज्ञ प्रशसनीय शिष्य, सशय रहित होता है ।
वह गुर की इच्छानूसा र, प्रवत्ति - करता हुआ, कर्मसमाचारी,
दप समाचारी, और समाधि युक्त .सवरवान हीकर तथा महा-
ब्रतों का पालन कर महान तेज वाला होता हैँ ॥४७॥
से देवगंधस्रमणुस्सपूहए, चइचु देह मत्तपंकपुल्वय ||,
सिद्धे वाहनह सासए,देवे वा अप्परए महिड्दिए । ४ ८। तिवेमि।
- , देव, गधर्व और)मनुष्यों से पुरनित वह शिष्य, मल मूत्र
से भरे हुए|इस-शरोर को छोडकर, इसी ज़न्म में सिद्ध एव
शाइवत हो जाता हैं. “यदि कुछ कर्म शेष रह जाय तो : महान
ऋद्धियाली देव होता है । ऐसा में कहता हू ॥४८॥
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परिव्वयन्तो पट्टी ,णो विशिहरण्णेब्जा | कयरे खलु ते बावीसं
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