विद्धशालभञ्जिका | Viddhashalabhanjika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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साय प्रवेश करता है। विदूधक सहरसा मश्व पर आकर पहेलीयुक्त बात करता
है। तदनन्तर वह कुछ प्रश्न करता दै। यया--यहाँ कौन है १ किसने विजय प्रात
की € भादि, आदि । इसके साथ वार्तालाप करते हुए. यूज़घार कयावस्तु की
सूचना देता है* ।
मरत के अनुसार विदृषक द्विज होता दै॥ इसके दाँत बढ़े-बढ़े और आँखें
रक्त वर्ण की होती हैं | यह कुबड़ा और विकृत रूप वाला होता है? | इसके
दिल होने का अमिप्राय यह है हि विदृषह् धद्ध जाति क्या नहीं हो सकता।
झारदातनय ने भी मरत के झर्ज्दी को यत्किश्वित् परिवर्तनों के साथ दुराया है 1
दिल्र होने के कारण विदूषक यशोपवीद घारण किए रद्दता है। यह अपने हाथ में
छड्ढी मी लिए. रदता है जिसे दण्डकाइ अयवा कुरिलक कहते हैं. ब्राक्षण ज्ञाति
का होने से स्वभाव से ही वह पेट्ट, मधुरूप्रिय एवं भीर होता है )
नायक के चार मेर्दों के आधार पर विवृषक के मी चार भेद ई---डिड्ढी,
दिज, यज्ीयी और शिष्य; णो ऋमशः दिव्य, रुप, अमात्य और ब्राक्षण नायक
के दिवूषक होते है“ | शारदावनय ने चारों प्रकार के नायकों के विदृषर्कों के
' गुर्णों का उल्डेख किया है। देवताओं का विदृषह्न संत्यवादी, भूत, बर्वमान
ओर भविष्य का शाठा, इत्याकृत्य का विशेषज्ञ, तर्क और वितर्क करने वाला
और ययार्य, इशिवादी हुआ करठा है। राजा का विदूषक शि०2 परिहास करने
बाला, अर्थ और ह्लि्वों में शुद्ध मन वात्य और देवी की परिचारिकाओं का
१. ठया च भारती भेदे त्रिग् सम्प्योजयेत् ॥
विदृषकत्त्वेकपदां सूतधार' 77777 1
असम्ददकयात्रायां कुर्यात् कयानिक्रां तदः ॥
विठण्डां गण्डसंयुक्तों नालीक च प्रयोजयेत् |
कस्विएति चित केनेल्यादिकाब्य ***** ॥| च
( नाय्यशास्त्र, पश्षम अध्याव, प्रृ० २४२ )
२. बामनो दन्तुरो कुब्जो दिडन्मा विक्ृवाननः |
खलतिः पिन्नलाक्षश्व स॒ विवेये विदूषकः॥
हे ( नास्वगासत्र, अध्याय ३५--५७ )
३. मावपग्रकाशन, पु० २८९, दशम अधिकार। * ह
४. नाव्यशासत्र, अध्याय ३४, १६-२० ।
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