दशरूपकम | Dasharupakam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९७1] है का प्रमुख लक्ष्य वस्तु, नेता तथा रस के विश्लेषण एवं रूपकी के अमुख दशभेदों के वर्णन तक ही सीमित है ।. धनज्ञय को अभीष्ट भी यही था,. क्योंकि उनका लक्ष्य तो केवल नाख्यानां किन्तु किश्वित्‌ प्रशुणस्वचनया लक्षण सट्डिपामि-- यही | रहा है । धनज्नय के नाटकसम्बन्धी, -रससम्बन्धी या अन्य सर्तों का चिशद विवेचन अगले पृष्ठों में किया जा रहा है । धनज्ञय के दशरूपक तथा इनके भाई के द्वारो इसी के. कारिकाभाग पर लिखी वृत्ति अवलोक का एक विशेष महत्त्व है । धनज्लय व धनिक के वस्तुविसाग, , पाँच अथप्रकृति, अवस्था तथा सन्धियों के अज्नविभाजन, अर्थेपक्षेपकी का चवणन, नायक व तायिकाओं का अवस्थानुरूप मनोवेज्ञानिक विभाजन, उनके संहकारियों का वणन, रस [व उनके साधनों का विश्लेषण का प्रभाव वाद के अलड्भारशासत्र व नाट्यशाख्र के प्रन्थों। पर स्पष्ट परिलक्षित होता है । विद्यानाथ के प्रतापरुद्रीय का नायकनायिकामेद्‌ इसका स्पष्टतः ऋणी है । विश्वनाथ के साहित्यदपण के तृतीय परिष्छेद का नायक- नायिकामेद तथा पष्ठ परिच्छेद का दृश्यकाव्यविवेचन दशरूपक से ही प्रभावित है । यहीं तक नहीं भानुदत्त की रसमज़्री, रसतरज्ञिगी, भावमिश्र की रससरसी आदि रस व नायिकामेद' के प्रन्थ भी इसके प्रभाव से. अछते नहीं 4 १६ वीं शताब्दी का गुणचन्द्र व रामचन्द्र का लिखा हुआ नाटयशाज्र का ग्रन्थ 'नाट्यद्पण” भी दशरूपक को किसी हृद तक उपजीव्य वनाकर चलता हैं ।. दशरूपक पर धनिक, वहुरूपभट्ट, नसिहभह, देवपाणि, क्षोणीधरमिश्र, तथा कूरंबीराम की टीकाएँ हैं । इनमें धनिक की अवलोक नामक दइत्ति ही असिद्धि पा सकी है । (७ ) धनिक :--धनिक 'दशरूपक! कारिकाओं के रचयिता धर्मश्नय के ही छोटे भाई थे । अचलोक के अत्येक प्रकाश के अन्त की पुष्पिका से यह स्पष्ट है कि थे विष्णु के पुत्र थे-- इति श्रीविष्णुस्नोधेनिकस्य कृतो दशरूपावलोके रसविचारें नाम चतुर्थ! प्रकाश: समाप्त ॥ ; कुछ लोगों के मतानुसार कारिकाभाग तथा वृत्तिभाग दोनों एक ही व्यक्ति की रचनाएँ हें । कई अलक्षारभ्थों में दशरूपक को घनिक की रचना बताया जाता है । यही कारण है कि कारिकाकार तथा इत्तिकार की अभिन्नता चाल भ्रान्त मत प्रचलित हो गया है । अवलोक में ऐसे कई स्थल हैं जो इस वात का स्पष्ट निर्देश करते हैं, कि कारिकासाग तथा इत्तिभाग दो भिन्न भिन्न व्यक्तियों की रचनाएँ हें । घनिक के मर्तों का विशेष विवेद्न हम आगे करेंगे। चसे धनिक पक्के अभिधाचादी तथा व्यकनाविरोधी हैं । वे रस के सम्बन्ध सें भटनायक के मत को मानते हैं; यद्यपि उस मत में लोह्नट व श्भुक के मतों का कुछ मिश्रण कर लेते हैं । वे शान्त रस को नाटक में स्थान नहीं देते । उनके इन सिद्धान्तों को हम आगे देखेंगे । धनिक ने अवलोक' के अतिरिक्त साहित्यशात्र पर एक दूसरे प्रन्थ की भी रचना की थी, यह काव्यनिणेयः था । घनिक अपनी ब्त्ति के अतुर्थश्रकाश स्वयं इस




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