प्रिया | Priya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दीप्ति खण्डेलवाल - Deepti Khandelwal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भो बढां था जाने कितने सुझ-जैंसे 'अभिमन्दु' अनाम होते हैं, उनके
चक्रब्यूट, अद्श्य,*उनके युद्धों दाग कोई इतिहास नहीं लिखा जाता* *चक्र-
अ्यूडू में वे अनाम युद्ध मी करते हैं'“*और निन्यान्तरे श्रतिशत जिस मिट्टो से
वे उठते हैं, उसी में मिल जाते हैं---चुपवाप 1 न उनका कोई इतिहास लिया
जाता है. ने उनका कोई स्मारक बनता है***उनकी चिता की राख भी दस
घूल में मिचकर रह जाती है।*।
बावा बात-बात पर पौराणिक कयाओं के उदाहरण देते, इतिहास का
उल्लेख करते, प्रिया को अपनी कहानी एक तन्मयता से, आत्म-विस्मृतन्से
मुनाया करते । कान तक फैली आंखों को पूरा फैलाये प्रिया तन््मयता से सुना
कंसती | बावा के वर्षन चित्रात्मक हीते या प्रिया की आर्खें उन्हें चिन्नात्मक
बना लेतीं***एक तन्मय चित्नात्ममता, नाना और नातिन को एकात्म कर
देती 1
“तो बहू गोरा-उजला छोकरा रविश्वंकर प्रकृति से खिलदढ़ा था, शरारती,
दंड । उसका सबसे पहला खेल था,पत्थर मार-मारकर गाव की पाती भर
कर जाती हुई औरतों के घड़े फोड़ देना । रवि का गाँव इतना गरीब था कि
प्रीतल कया कल्तसा कुछ के ही पास था, शेप के पास मिट्टी के घड़े ही थे ।
कभी निशाना चूक जाता, कमी उचट जाता, कभी सचमुच कोई घड़ा फूड
जाता, तय कोई औरत रवि को जी भरकर गालिवां देती, कोई उसकी मां
को भी,*““अपने हिस्से की गालिया तो वह इमली चूसते खा लिया करता,
किन्तु माँ का नाम गाली के साथ सुनते ही होश खो बैठता' *इतना उद्दृड
हो उठता कि माँ को गाजी देनेवाली का घड़ा बार-बार फोडतवा। घर
पहुंचता तो माँ जी भरकर पीटती, बाहर निकलता तो पिटते-पिटते **बचता
गजब की फुर्ती थी उसकी टागो मे, ऐसी दोड़ लगाता कि यह जा**वह
जा” उसे पकड़ने दौड़ने वाले थक कर हांफने लगते, वह नदी-किनारे
पहुंचकर बसी बजाने लगता' “नदी में मछलियां बहुत थीं** मछली वाली
यंसी से वहु मछलिया पकड़ना सीख गया था'““धीरे-धीरे वह मद्धलियां
बेचना भी सीख गया ।
मां मे/ पंडित जी को हाथ जोड़-जोड़ कर गाव की पाठशाला में उस
खिलंदड़ उदृंढ छोकरे को पढ़ने वंठाया | सात वर्ष का वह लड़का 'क-्स-ग'
भी नही जानता था, बीस से ज्यादा गिनती भी नही | उसके गोरे, मेले, घुल-
भरे मुख पर चांटे जड़ती मां, एक दिन फूट-फूट कर रोने लगी घी--'बरे
/
रपू
User Reviews
No Reviews | Add Yours...