नारी मन | Naari Man

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Naari Man by दीप्ति खण्डेलवाल - Deepti Khandelwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वहया/15 गरम करवे पिलाया दोडकर मुहल्ले व वैद्यराज स दवा लाबर पिला दो--'लेदिन अशोक ! तर दम तो है नही र। डेंढ पसली का है. उस मुए कल्‍लन से का भिठ गया र 1” चदा न जशाव स पूछा । अशोक न अपनी दद नौर आआनुञजा से लाल अणे वोली-- 'बल्लन तुम्ह गाली दे रहा था मा। उसने तुझे उसने तुये अशाव उत्तेजना से कापने लगा था--“उसने तुझे छिनाल कहा मा । बेहया कहा बापू को भी गाली दी तो मैं सह गया लेक्नि तरी गाली नही सहमा । अच्छा मा, तू ही एक वार वह दे कि तू बेहया नहीं है--मैं मान लूगा, चाह फिर हर कोई कहता रह ।* और अशाक के प्रन वे उत्तरम 'बेहया” चादा पहली बार आचल से मुख ढापकर फट फटकर राने लगी थी ।




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