लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी | Lauhapurush Saradar Wallabh Bhai Patel Ki Jivani

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Lauhapurush Saradar Wallabh Bhai Patel Ki Jivani  by सेठ गोविन्ददास - Seth Govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपने एक डाक्टर मित्र तथा अन्य दो-चार निकटवर्तियों से वात की । बच्चों की, उनके खच की और विलायत के अपने खर्च की सारी व्यव- स्था तो उन्होंने पहले ही कर लो थी। छोटे भाई काशीमाई उन्ही दिनो वकील दनकर बोरसद आए थे | अतः उन्हे परिवार और काम- काज सौंपकर रात को बम्बई के लिए रवाना हो गए। वहा से अगस्त 1910 को जहाज पर बैठे । इसके पूर्वे वल्लभ भाई ने समुद्री जहाज कभी देखा तक नही था | विलायती पोशाक भी उन्होंने उस्ती दिन पहनी थी | मेज-कुर्सी पर छुरी-काटे से खाना भी उन्होने कभी नही खाया था। अतः इन सब बातों से अनभिन्न एक सीधे-सादे देहाती की तरह जहाज पर चढ़ गए। वस्वई से रवाना होते वक्‍त विट्ठुल भाई ने काठियावाड के एक छोटे रजवाड़े के ठाकुर का साथ कर दिया था । बल्‍्लभ भाई कानून की कुछ पुस्तकें भी अपने साथ ले गए जिन्हे वे रास्ते मे पढ़ते हुए समय का संदुपमोग करते रहे । लल्दन पहुंचते पर पहले दित वल्लभ भाई अपने साथी ठाकुर के साथ सेसिल होटल में ठहरे1 किन्तु यह होटल इतना महंगा था कि दूसरे ही दिन श्री जोरा भाई वा भाई पटेल, जो वेज बाटर में रहते थे, उनके यहां जाना पडा / बाद में वोर्डरों को रखनेवाली एक स्त्री के यहा 'रहने की व्यवस्था कर ली। बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए वे मिडिल टेम्पल में भरती हुए । कुछ ही समय बाद परीक्षा होने वाली थी! कानून को किताबें विशेषकर “रोमन ला' तो उन्होंने जहाज में ही पढ़ डाला था, अत. इस परीक्षा मे रोमन ला के पर्चे में बैठे और बहुत अच्छे नम्बरो से आनर्स के साथ प्रथम नम्बर मे उत्तीर्ण हुए 1 बैरिस्टर बनने के लिए कुल बारह टमं (प्रत्येक टमं तीत मास की) पूरी करनी पडती थी। प्रत्येक टर्म में कुछ भोज (डिनर) होते हैं। इनमें से कम से कम कुछ तो प्रत्येक प्रत्याशी को लेने ही पड़ते हैं। इसलिए आम तौर पर तीन वर्ष में वैरिस्टर होते हैं । परन्तु छ टमम पूरे करने के बाद यानी डेढ साल बाद किसीको पूरो परीक्षा देनी हो, तो उसे देने दी जाती है। इस पूरी परीक्षा मे जो आन मे उत्तीर्ण होता है, उसे दो टर्म॑ वी सरदार पदेल /23




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