सप्त रश्मि | Sapt Rashmi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sapt Rashmi by सेठ गोविन्ददास - Seth Govinddas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सेठ गोविन्ददास - Seth Govinddas

Add Infomation AboutSeth Govinddas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रक्किथन १५ स्वामाविकता । नारक के प्रदशेनं के कारण उसमें योदी सी प्रस्वामाविकता भी श्रक्षम्य हं। श्रश्राव्य' (सांलीलोकी) और नियतधाग्यः (एसाइड) दोनो प्रकार के स्वगत कथनो को एकाकी मं कोई स्थान नही मिल सकता ! पय्‌, कविता और नृत्य की भरमार भी एकाकी में नहीं की जा सकती | इसका यह मतलब नही ह किं पद्य, कचिता या नृत्य का एकाकी मे स्थान ही नही ह! पूरे नाटक कै सदुरा एकाकी में भी ये कही स्वाभाविक रीतिसेश्रा सकते हो तो रखें जा सकते है, यद्यपि इस सग्रह के एक भी नाटक मेँ पद्य, कविता यथा नृत्य कौ स्थान नहीं मिल सका हैँ। एकाकी को सर्वया स्वाभाविक बनाने का हरेक प्रयत्न होना आवदयक है । श्रेष्ठ एकांकी किसे कह सकते ই? कौन कलाजन्य वस्तु शरेष्ठ कही जा सकती हं, इस सवन्व में मेने भपने तीन नाठक' के प्राककथन मे कुछ विवेचन किया था इस विषय में उस समय मेरा जैसा मत था, वैसा ही श्राज भी है। जो कसौटी श्रन्य कलाजन्य वस्तु की हो सकती हैं वही एकाकी नाटक की भी। इस कसौटी का दिगदर्शन मेंने इग्लेण्ड के एक प्रसिद्ध तत्त्ववेत्ता जान रास्किन के एक कथन को उद्घृत कर किया था। चूँकि इंस संबन्ध में उस दिन के और श्राज के मेरे मत में कोई परिवर्तेत नहीं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now