ब्रज और ब्रज-यात्रा | Braj Aur Braj-Yatra

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Braj Aur Braj-Yatra by सेठ गोविन्ददास - Seth Govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रजभुमि धौर उसका तामकररण ७ प्नुयाधियों में गोपाल कृष्ण पंदा हुए, शोर इन्होनि सम्भवतः अपनी प्राचीन परम्परा को स्मरण करके वेद-विहित मार्ग का निरोध करके इन्द्र-पुजा रोक दी प्नौर अपनी जातीय परम्परा में गोवरद्धन-पूुजा स्थापित की | वँदिकों और कृष्ण के संघर्ष की गूज विधृता की कहानी में भी मिलती है । यज्ञ करने वाले ब्राह्मण प्रपनी पत्नी को कृष्ण का सामान्य सत्कार भी करने से रोका था । कृष्ण के समय में ब्रज के किसी क्षेत्र में नगरों का भी प्राबल्य हो उठा था, जिनके प्रधान कालिय नाग को पराजित करके कृष्ण ने पलायन करने के लिए विवद् किया । ब्रजभूमि में जंन और बौद्ध घ्म--तदनन्तर बौद्ध तथा जैन धर्मं कौ लहर चली । जैन धर्म की दृष्टि से मधुरा का महत्त्व बहुत ग्रधिक है । बौड़ों ते पहले यहाँ जेन धर्म जम गया, ऐसा प्रतीत होता है । क्‍ बाद में बौद्ध धर्म यहाँ प्राया। जन धर्म तथा बौद्ध धम्ं के संदर्भों को देखकर यह विदित होता है कि जेन-धर्मी तो यहाँ के सभी प्रकार के निवासियों के साथ बिना किसी संघ्र्य के निवास्त करते रहे; क्योंकि जैन धमं के ग्रंथों में यहाँ के किसी भी निवासी से किमी प्रकार कै संघषं का संकेत नहीं मिलता । मवुरा के प्रघात निवासी इस काल में ब्राह्मण प्रतीत होते हैं । जैनों का ब्राह्मणों से कोई संघर्ष नहीं हुप्ला, किन्तु वौद्ध-ग्रंथों गौर जेत-प्रंबों से विदित होता है कि बौद्धों का झगड़ा জলা से हुमा था। यह ऋूगड़ा एक स्तूप के ऊपर हुआ था । स्तुप देव-निमित' वा, जिसका प्रथं यह लगाया जा सकता है कि यह बहुत पुराना धा । जिन्न समय कगडा हृभ्रा था उससे इतने काल पूर्व का बना हुग्रा यह स्तृप था कि उस समय तक उत्तके निर्माता का ज्ञान किसी को नहीं था। यह 'देव-स्तूप “रत्न-स्तृप' था । इस पुराने स्तूप पर बौद्धों ने ग्रधिकार जमाना चाहा, तभी जन चेते और उन्होंने कहा कि यह जैन-स्तप है । इस संघर्ष में जन विजयी हुए। कभी उस काल में रथ-यात्रा के पीछे भी जैन झौर बौद्धों में कगड़ा हो गया था ।* वृहत्कल्पसूत्र भाषा में यह भी उल्लेख श्राया बताते हैं कि मथुरा में जो नये गृह बनाये जाते थे उनके श्रालों में मंगलावं, आहंत प्रतिमा स्थापित की जाती थी, अन्यथा इन घरों के गिर जाते की शंका रहती थो । इससे मथुरा में किस्ती समय जैन धर्म के प्रावल्य की बात प्विद्ध होती है । जैनियों का चौरासी तीथं ग्राज भी है। मथुरा में ही ग्रायं स्कंदिल की ग्रध्यक्षता में जैनों की दूसरी परिषद्‌ बुलायी गयो थी, जिसमें नष्ट होते हुए श्रागमों की वाचना की पुनव्य॑वस्था की गई थी । बौद्ध धर्म की दृष्टि से भी मथुरा का महृत््व कम नहीं था। भगवान्‌ बुद्ध स्वयं यहाँ ग्राये थे भौर इसमें संदेह नहीं कि वे मथुरा से प्रसन्न भी नहीं हुए थे । झंगुत्तर निकाय में वताया गया है कि भगवान्‌ बुद्ध को मथुरा में पाँच दोष मिले थे । किसी बौद्ध ग्रंथ में यह भी उल्लेख है कि मथुरा के यक्षों से ब्राह्मण परेशान थे । वै भगवान्‌ के पास गये भ्रौर उनसे भ्रपना कष्ट कहा । यक्ष-तायक को भगवान्‌ बुद्ध ने अपने वश में कर लिया । उप्तने कहा कि यदि ये ब्राह्मण आपके लिए एक विहार १६ वदत्कथा कोष ।




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