भारतीय कविता | Bharatiy Kavita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
620
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)असमसमिया श्रे
कऊंपण
“दिस अर्थ : दैठ इज सफिशिएंट ”
तम मुझे ध्वमा करो प्रथ्वी
मैं क्पण हूँ
तुम्हारे सब-कुछ दान ग्रहण करते हुए भी
तुमको सचमुच में
प्यार नहीं कर सका,
यह मेरी अकुंठित स्वीकृति है
में अकृतज्ञ हू ।
तुम्हारे आषाढ़ के आऔँसुओं को देखा उससे
तुम्हारे बादल के वक्ष में चित्र अंकित किया
तुम्हारी नदियाँ जीवन-गीति सुनाना चाहती हैं
जो नियमों में नहीं बोल सकतीं
तो मी तुम्हारा दान-विपुल स्नेह
मैं सिफे अस्वीकार कर आया हूँ
मैं तो इस पृथ्वी का नहीं हैं ।
यह नीलाकाश के
किसी एक अद्दश्य देश में
मानो इन्तजार कर रही है
मेरी प्रिया, मेरी ही प्रिया,
और मेरा घर, मेरा प्रेम ।
में मै मे
आइत चैतन्य ने मुझे छा दिया छाया-सा मायामय
ढरियाला चित्र-वह तुम्हारा दी था हे पृथ्वी !
हरी प्रथ्वी का आदिम अरण्य
मैं उसका आदिम मानव ।
डाइनौसौर के साथ मेरा युद्ध अविराम है, ।
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