साधना | Sadhana

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Sadhana by राय कृष्णदास - Rai Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कृपालु क्ंधार है मेरे नाविऊ, यह कैसी बात है कि जब मेरी नाव मेंम- घार में थी तब ते तुम्हें हटा कर मैंने डॉड ले लिये घे पौर सगवे तुम्हारे आसन पर आसीन होकर बडा भारी सिवैया बन बैठा था | पर जन वह्द धार से पार द्वोकर गम्भीर जल में पहुँची तब मैं हार कर उसे तुम्हारे भरोसे छोडता हूँ। तब ते नाव धार फे सहारे वह रही घी, खेने की आव- श्यकता द्वी न थी। इसी से मेरी मूर्खता न खुली | पर अब ९ हब ते इस गम्भीर जल से चतुर नाविक फे बिना और कौन नाव निकाल सकता है ९ परन्तु मैं तुम्हारी बडाई किस मुख से फररूँ | तुम मेरी मूख॑ता पैर प्रभिमान तथा अपने पअ्रपमान की झोर नहीं देखते और सप्रेम डांड लेकर नाव किनारे की शोर चलाते दवा । श्पु




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