शरीर बीवी | Sharir Biwi

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Sharir Biwi by मिर्जा अजीमबेग - Mirja Ajimabeg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरा परिच्देद गलत फहमी १ हम थीयी से सबेरे यह फहकरुगये थे क्रि नो ढस चजे तक लौट कर आ जायेंगे, किन्तु मझुली का शिकार भी क्‍या बेकार चीज है। नी बजे की जगह पर, गर्मिया की कड़ी धूप में, बारह धजे के बाद धर पहुँचे। शिकार में हमे उत्तनी ही सफ- लता मिली, जितनी आमतौर से मछली के शिकारियों को मिला करती है। हैरान भी हुए, और कुझ नमिला। भसे ध्यासे, जलते भुनते घर पहुँचे। नहा धांकर कमरे में जप पहुँचे, तब नौकरानी ने कहा--विगस साहिबा आपका इन्तज़ार करते करते अभी सोई हैं।” दम झट दूसरे कमरे मे गये और गाना जाया । हाथ घोकर सिगरेट सुलगाया ओर सीधे कमरे में हुँचे । हमे ऐसा मालूम हुआ फि हम स्पर्ग में थ्रा गये। तीन प्रोर स़स फी टट्टियाँ लगी हुई थीं, और बिजली का पद्ा गीरों में चल रहा था। दमारी शरीर पीवी सो रही थी। हमने यान से उसके पवित्र चेहरे को देया। कुझ सोचा। सामने जात रक़्सी थी। कुछ और ख्याल आया। 'अत* कलम को उल्टी ओर से डुबोफर चेह्टे को भयानक बना दिया, और उसके थाद हम भी अपने पलेग 'पर पड कर सो रहे। थके प्ादे तो थे ही | ऐसे सोये कि तन पदन का ख्याल न रहा | कुछ देर के बाद हमने मुंह पर ठडक सा अनुभव किया। आऑँस झुल्नी तो बेगम साहिबा को शरारत करते हुए पाया।




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