भूमि कन्या सीता | Bhumi Kanya Sita

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Bhumi Kanya Sita by भार्गवराम विठ्ठल - Bhargavaram Viththal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहुला प्रंक 3 मेर्य मत अराजर बल रहा बा। अराजर एक का ही जितत कर रही थी। पर उस एक को मेरी याद भी म थी | प्राज मैं पारक्षौ बन मई है। प्रपने उस उत्तर्माय प्रे | जिस शोढड़ाराशता के लिए धुमते इतनी भयंकर परीक्षा दी क्‍या शत लोगों ने कमी सुस्त भी गाव किया ? ह्ः मभह्ठीने तुम राजण की कारा में पीं इसलिए तुम पर संदेह दिया गया। अौदह प्राप्त से म॑ मौ इस प्रयोष्या की कारा में हुँ फिर बर्मों किसी गे मुझ पर सरेह लही दिया ? कर्मो नही मुझे भरित परीक्षा देनी पड़ी !/ तुम्ही को क्यों भरगित परीक्षा देनी पड़ी ? [ श्लण भर बोलों अप रहती है । क्ौता--रहुते शो वे बातें । पोकाराबसा का शागमित्व बिस पर होता है उ्के सिबा प्रौर कोई भी इस बातों को रहीं समझ सकता ) उपिज्ञा--श्या तुम छमम्प्ती हो ? सीता--मुझ पर प्षोकाराधता का दायित्व कहां है ? उमिक्षा--६[म इस प्रमोष्या के साम्राम्प की साज़ाड़ी हो । छीता--हाँ ---मै रानी हूँ--राणा गही । इपिला--हाँ, तुम स्त्री हो--पुस्प तह्ठी । पौस्व होता है पृक्प के स्िए | चोशड धर्ष थो में छस्पासिती प्री रही हैँ बह किस बृत्ति के बस पर ? बड़ कया मेरा पौस्प सही था ? देह के सेदसाव से बृत्ति का भेद खयृणयाथाव ? तीता--प६ पुम्ह कैसे पृस्य ? अमिला--जौरह साल में कर वा रही थी? तुम बसबाध में थीं तुम्हें बट म था पास बैंमब न था फिर भी तुम पति के पाप थीं। पठि के प्रेम का छत्र तुम्हारे मस्तरू पर अमक रहा था। मैं घर में औ-बैमब में थौ कहूँतों भी प्रमुचित न होगा--फिर मौ मैं प्रताष जी गिरदार थी | उस एश्यकी चौबन मे मुझे सोचने के लिए आस्प किया | उम्र सोचने से थो मैने छमम्य बह यहू कि गिभाता की सृष्टि का रद्ी स्‍त्री है ्लौर पुरुष पुरुप !




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