हक़ से गुलाम | Hak Se Gulam

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Hak Se Gulam by भार्गवराम विठ्ठल - Bhargavaram Viththal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) थी मेरी--और इसीछिये में यहाँ नही आया । टेक इट फार ग्राण्टेड देट भाई एम नाट हियर । फेरोपत--उन्हें सदगति मिली । अब हम उनका वसीयतनामा देखे । इस लिफाफे को खोलते समय मेरा हाथ कॉाँपने लगता है। अज्ञात विधि- लेख की तरह यह लेख किस के भाग्य पर क्या कया परिणाम करेगा, इसे कोई नहीं कह सकता । बेकुठराव--क्या वकील भी नहीं * लगता है भाप के सहारे आप ने सीलें नही खोली * केरोपत--गुनाह के तरीके वदमाद गुनहगारों को ही सुझ सकते है। बेकुठराव--अथवा उन गुनहगारो के इज्जतदार वकीलों को सूझ सकते हैं । केरोपत--आागे सुनिये । यह छिफाफा*** वेकुठराव--जिसे पहले खोलकर देख लिया था * केरोपत--मे अब खोलता हूँ । पहले वावासाहव ने यह सम्पत्ति कंसे प्राप्त की, इसका वर्णन है । उसे दोहराने की जरूरत नहीं । अब उनके फेंसले का ब्योरा सुनिये 1--[पढकर देखता है 1] वेकुठराव--कान्होवा, मूँह से लार न टपकाना । वसीयतनामे में अगर नाम न निकला तो मुंह की लार गायव होकर गला सुख जायेगा ! मुह सफेद होने का मौका है यह, समझे * केरोपत--पढ़ने लगता है ।]--“'मेरा वडा लड़का सदानद सात साल पहले मुझ से लडकर चला गया । उसका अभी तक _कोई पता नहीं 1 मे अकारण ही उस पर नाराज हुआ । अब मैं पछता रहा हें । इसलिये नीचे लिखी हुई मेरी स्वसपादित सारी जायदाद मै उसे देता हूँ । यदि वह जीवित न हो, तो यह जायदाद उसके लड़के को दी जावे । अगर उसका लड़का न हो तो उसकी पत्नी को दी जावे । इनमें से यदि कोई नहों तो ?*** बंकुठराव--बडे कुशल अभिनेता हो, वकील साहव ! कितना यथांथे




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